ब्रह्मदेव_सूरि
01 - मंगलाचरण
02 - जीव द्रव्य के नव अधिकार
03 - जीवत्व का लक्षण
04 - उपयोग का वर्णन
05 - ज्ञानोपयोग के भेद
06 - उभयनय से उपयोग का लक्षण
07 - जीव अमूर्तिक है
08 - जीव कर्ता है
09 - जीव भोक्ता है
10 - जीव स्वदेह बराबर है
11 - जीव संसारी है
12 - चौदह जीव समास
13 - उभयनय से संसारी जीव का स्वरूप
14 - सिद्ध और ऊर्ध्वगमन का स्वरूप
15 - अजीव द्रव्य और उनमें मूर्तिक-अमूर्तिक द्रव्य
16 - पुद्गल द्रव्य की विभाव व्यंजन पर्यायें
17 - धर्म द्रव्य का स्वरूप
18 - अधर्म द्रव्य का स्वरूप
19 - आकाश द्रव्य का स्वरूप
20 - लोकाकाश-अलोकाकाश का स्वरूप
21 - कालद्रव्य का स्वरूप
22 - काल द्रव्य की संख्या
23 - द्रव्य और अस्तिकाय के भेद
24 - अस्तिकाय का स्वरूप और नाम की सार्थकता
25 - द्रव्यों की प्रदेश संख्या
26 - पुद्गल का परमाणु अस्तिकाय है
27 - प्रदेश का लक्षण और उसकी योग्यता
28 - सात तत्त्व
29 - भावास्रव और द्रव्यास्रव
30 - भावास्रव के भेद
31 - द्रव्यास्रव का स्वरूप और भेद
32 - भावबंध और द्रव्यबंध
33 - बन्ध के भेद और कारण
34 - भावसंवर और द्रव्यसंवर का स्वरूप
35 - भावसंवर के भेद
36 - निर्जरा का स्वरूप
37 - मोक्ष का स्वरूप और उसके भेद
38 - पुण्य और पाप पदार्थ
39 - व्यवहार और निश्चय मोक्ष मार्ग
40 - आत्मा ही निश्चयनय से मोक्ष मार्ग है
41 - व्यवहार सम्यग्दर्शन
42 - सम्यग्ज्ञान का स्वरूप
43 - दर्शनोपयोग का स्वरूप
44 - दर्शन और ज्ञान का क्रम
45 - व्यवहार सम्यक्चारित्र और उसके भेद
46 - निश्चयचारित्र का लक्षण
47 - ध्यानाभ्यास की प्ररेणा
48 - ध्यान का उपाय
49 - ध्यान के योग्य मंत्र
50 - अरिहंत परमेष्ठी का लक्षण
51 - सिद्ध परमेष्ठी का स्वरूप
52 - आचार्य परमेष्ठी का स्वरूप
53 - उपाध्याय परमेष्ठी का स्वरूप
54 - साधु परमेष्ठी का स्वरूप
55 - निश्चयध्यान का लक्षण
56 - परमध्यान का लक्षण
57 - ध्यान का कारण
58 - ग्रन्थकर्ता का लघुता प्रकाशन
ब्रह्मदेव_सूरि
आर्यिका_ज्ञानमती
01 - मंगलाचरण
02 - जीव द्रव्य के नव अधिकार
03 - जीवत्व का लक्षण
04 - उपयोग का वर्णन
05 - ज्ञानोपयोग के भेद
06 - उभयनय से उपयोग का लक्षण
07 - जीव अमूर्तिक है
08 - जीव कर्ता है
09 - जीव भोक्ता है
10 - जीव स्वदेह बराबर है
11 - जीव संसारी है
12 - चौदह जीव समास
13 - उभयनय से संसारी जीव का स्वरूप
14 - सिद्ध और ऊर्ध्वगमन का स्वरूप
15 - अजीव द्रव्य और उनमें मूर्तिक-अमूर्तिक द्रव्य
16 - पुद्गल द्रव्य की विभाव व्यंजन पर्यायें
17 - धर्म द्रव्य का स्वरूप
18 - अधर्म द्रव्य का स्वरूप
19 - आकाश द्रव्य का स्वरूप
20 - लोकाकाश-अलोकाकाश का स्वरूप
21 - कालद्रव्य का स्वरूप
22 - काल द्रव्य की संख्या
23 - द्रव्य और अस्तिकाय के भेद
24 - अस्तिकाय का स्वरूप और नाम की सार्थकता
25 - द्रव्यों की प्रदेश संख्या
26 - पुद्गल का परमाणु अस्तिकाय है
27 - प्रदेश का लक्षण और उसकी योग्यता
28 - सात तत्त्व
29 - भावास्रव और द्रव्यास्रव
30 - भावास्रव के भेद
31 - द्रव्यास्रव का स्वरूप और भेद
32 - भावबंध और द्रव्यबंध
33 - बन्ध के भेद और कारण
34 - भावसंवर और द्रव्यसंवर का स्वरूप
35 - भावसंवर के भेद
36 - निर्जरा का स्वरूप
37 - मोक्ष का स्वरूप और उसके भेद
38 - पुण्य और पाप पदार्थ
39 - व्यवहार और निश्चय मोक्ष मार्ग
40 - आत्मा ही निश्चयनय से मोक्ष मार्ग है
41 - व्यवहार सम्यग्दर्शन
42 - सम्यग्ज्ञान का स्वरूप
43 - दर्शनोपयोग का स्वरूप
44 - दर्शन और ज्ञान का क्रम
45 - व्यवहार सम्यक्चारित्र और उसके भेद
46 - निश्चयचारित्र का लक्षण
47 - ध्यानाभ्यास की प्ररेणा
48 - ध्यान का उपाय
49 - ध्यान के योग्य मंत्र
50 - अरिहंत परमेष्ठी का लक्षण
51 - सिद्ध परमेष्ठी का स्वरूप
52 - आचार्य परमेष्ठी का स्वरूप
53 - उपाध्याय परमेष्ठी का स्वरूप
54 - साधु परमेष्ठी का स्वरूप
55 - निश्चयध्यान का लक्षण
56 - परमध्यान का लक्षण
57 - ध्यान का कारण
58 - ग्रन्थकर्ता का लघुता प्रकाशन
आर्यिका_ज्ञानमती
!!
श्रीसर्वज्ञवीतरागाय नम:
!!
श्रीमद्-भगवन्नेमिचन्द्र-प्रणीत
श्री
द्रव्यसंग्रह
मूल सौरसेणी प्राकृत गाथा और ब्रह्मदेव-सूरि
(वि० सं० की १२वीं शताब्दी)
कृत टीका सहित
आभार : पद्यानुवाद : आ. डाॅ. हुकमचंद भारिल्ल
ब्रह्मदेव सूरि
आर्यिका ज्ञानमती
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