पद्मप्रभमलधारिदेव : संस्कृत
पुद्गलपर्यायस्वरूपाख्यानमेतत् । परमाणुपर्यायः पुद्गलस्य शुद्धपर्यायः परमपारिणामिकभावलक्षणः वस्तुगतषट्प्रकार-हानिवृद्धिरूपः अतिसूक्ष्मः अर्थपर्यायात्मकः सादिसनिधनोऽपि परद्रव्यनिरपेक्षत्वाच्छुद्धसद्भूत-व्यवहारनयात्मकः । अथवा हि एकस्मिन् समयेऽप्युत्पादव्ययध्रौव्यात्मकत्वात्सूक्ष्मऋजुसूत्र-नयात्मकः । स्कन्धपर्यायः स्वजातीयबन्धलक्षणलक्षितत्वादशुद्ध इति । (कलश--मालिनी) परपरिणतिदूरे शुद्धपर्यायरूपे सति न च परमाणोः स्कन्धपर्यायशब्दः । भगवति जिननाथे पंचबाणस्य वार्ता न च भवति यथेयं सोऽपि नित्यं तथैव ॥४२॥ यह, पुद्गल-पर्याय के स्वरूप का कथन है । परमाणु-पर्याय पुद्गल की शुद्ध पर्याय है - जो कि परम-पारिणामिक-भावस्वरूप है, वस्तु में होनेवाली छह प्रकार की हानि-वृद्धिरूप है, अति-सूक्ष्म है, अर्थ-पर्यायात्मक है और सादि-सान्त होने पर भी पर-द्रव्य से निरपेक्ष होने के कारण शुद्ध-सद्भूत-व्यवहारनयात्मक है अथवा एक समय में भी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक होने से सूक्ष्मऋृजुसूत्रनयात्मक है । स्कन्ध-पर्याय स्वजातीय बन्धरूप लक्षण से लक्षित होने के कारण अशुद्ध है । (कलश--दोहा)
(परमाणु) पर-परिणति से दूर शुद्ध-पर्यायरूप होने से परमाणु को स्कन्ध-पर्यायरूप शब्द नहीं होता; जिसप्रकार भगवान जिननाथ में कामदेव की वार्ता नहीं होती, उसीप्रकार परमाणु भी सदा अशब्द ही होता है ।
जिसप्रकार जिननाथ के कामभाव न होय । उस प्रकार परमाणु के शब्दोच्चार न होय ॥४२॥ |