+ बाह्यलिंग सहित अन्तरंग श्रद्धान ही सम्यग्दृष्टि -
छह दव्व णव पयत्था पंचत्थी सत्त तच्च णिद्दिट्ठा
सद्दहइ ताण रूवं सो सद्दिट्ठी मुणेयव्वो ॥19॥
षट्‌ द्रव्याणि नव पदार्था: पञ्‍चास्तिकाया: सप्ततत्त्वानि निर्दिष्टानि ।
श्रद्दधाति तेषां रूपं स: सदृष्टि: ज्ञातव्य: ॥१९॥
छह द्रव्य नव तत्त्वार्थ जिनवर देव ने जैसे कहे ।
है वही सम्यग्दृष्टि जो उस रूप में ही श्रद्धहै ॥१९॥
अन्वयार्थ : [छद्दव्व] छः द्रव्यों, [णव] नौ [पयत्था] पदार्थों, [पंचत्थी] पांच अस्तिकाय और [सत्ततच्च] सात तत्व [णिद्दिट्ठा] कहे गए हैं, [ताण] उनके [रूवं] स्वरुप का जो [सद्दहइ] श्रद्धान करता है [सो] उसे [सद्दिट्ठी] सम्यग्दृष्टि [मुणेयव्वो] जानना / मानना चाहिए ।

  जचंदछाबडा 

जचंदछाबडा :

(जाति अपेक्षा छह द्रव्यों के नाम) जीव, पुद्‌गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल - यह तो छह द्रव्य हैं तथा जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष और पुण्य, पाप - यह नव तत्त्व अर्थात्‌ नव पदार्थ हैं; छह द्रव्य काल बिना पंचास्तिकाय हैं । पुण्य-पाप बिना नव पदार्थ सप्त तत्त्व हैं । इनका संक्षेप स्वरूप इसप्रकार है - जीव तो चेतनास्वरूप है और चेतना दर्शनज्ञानमयी है; पुद्‌गल स्पर्श, रस, गंघ, वर्ण, गुणसहित मूर्तिक है, उसके परमाणु और स्कंध दो भेद हैं; स्कंध के भेद शब्द, बन्ध, सूक्ष्म, स्थूल, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप, उद्योत इत्यादि अनेक प्रकार हैं; धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य - ये एक-एक हैं, अमूर्तिक हैं, निष्क्रिय हैं, कालाणु असंख्यात द्रव्य हैं । काल को छोड़कर पाँच द्रव्य बहुप्रदेशी हैं, इसलिए अस्तिकाय पाँच हैं । कालद्रव्य बहुप्रदेशी नहीं है, इसलिए वह अस्तिकाय नहीं है; इत्यादिक उनका स्वरूप तत्त्वार्थ सूत्र की टीका से जानना ।

जीव पदार्थ एक है और अजीव पदार्थ पाँच हैं, जीव के कर्मबन्ध योग्य पुद्‌गलों को आना आस्रव है, कर्मों का बँधना बन्ध है, आस्रव का रुकना संवर है, कर्मबन्ध का झड़ना निर्जरा है, सम्पूर्ण कर्मों का नाश होना मोक्ष है, जीवों को सुख का निमित्त पुण्य है और दु:ख का निमित्त पाप है; ऐसे सप्त तत्त्व और नव पदार्थ हैं । इनका आगम के अनुसार स्वरूप जानकर श्रद्धान करनेवाले सम्यग्दृष्टि होते हैं ॥१९॥