+ इसी को दृढ़ करते हैं -
अमराण वंदियाणं रूवं दट्‌ठूण सीलसहियाणं
जे गारवं करंति य सम्मत्तविवज्जिया होंति ॥25॥
अमरै: वन्‍दितानां रूपं दृष्टवा शीलसहितानाम्‌ ।
ये गौरवं कुर्वन्ति च सम्यक्त्वविवर्जिता: भवन्‍ति ॥२५॥
अमर वंदित शील मण्डित रूप को भी देखकर ।
ना नमें गारब करें जो सम्यक्त्व विरहित जीव वे ॥२५॥
अन्वयार्थ : जिनका नग्न [रूवं] स्वरुप [अमराण] देवों द्वारा [वंदियाणं] वन्दनीय है और जो [सीलसहियाणं] शीलसहित है [जे] जो उन्हे [दट्ठूण] देखकर [गारवं] मान से उनकी उपासना नही करते वे [सम्मत्त] सम्यक्त्व से [विवज्जिया] रहित [होंति] है ।

  जचंदछाबडा 

जचंदछाबडा :

जिस यथाजातरूप को देखकर अणिमादिक ऋद्धियों के धारक देव भी चरणों में गिरते हैं, उसको देखकर मत्सरभाव से नमस्कार नहीं करते हैं, उनके सम्यक्त्व कैसा ? वे सम्यक्त्व से रहित ही हैं ॥२५॥