जचंदछाबडा :
लोक में भी ऐसा न्याय है जो गुणहीन हो उसको कोई श्रेष्ठ नहीं मानता है, देह रूपवान हो तो क्या, कुल बड़ा हो तो क्या, जाति बड़ी हो तो क्या, क्योंकि मोक्षमार्ग में तो दर्शन-ज्ञान-चारित्र गुण हैं, इनके बिना जाति-कुल-रूप आदि वंदनीय नहीं हैं, इनसे मुनि-श्रावकपणा नहीं आता है, मुनि-श्रावकपणा तो सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र से होता है, इसलिए इनके धारक हैं वही वंदने योग्य हैं, जाति, कुल आदि वंदने योग्य नहीं हैं ॥२७॥ |