+ समवसरण सहित तीर्थंकर वंदने योग्य हैं या नहीं -
चउसट्ठि चमरसहिओ चउतीसहि अइसएहिं संजुत्ते
अणवरबहुसत्तहिओ कम्मक्खयकारणणिमित्ते ॥29॥
चतु:षष्टिचमरसहित: चतुस्त्रिंशद्भिरतिशयै: संयुक्त: ।
अनवरतबहुसत्त्वहित: कर्मक्षयकारणनिमित्त: ॥२९॥
चौंसठ चमर चौंतीस अतिशय सहित जो अरहंत हैं ।
वे कर्मक्षय के हेतु सबके हितैषी भगवन्त हैं ॥२९॥
अन्वयार्थ : जो [चउसट्ठिचमरसहिओ] चौसठ चमरो सहित, चौतीस [अइसएहिं] अतिशयों से [संजुत्तो] युक्त है, विहार के समय पीछे चलने वाले [अणुवर] सेवको तथा अन्य [बहु सत्त हिओ] अनेक जीवों का हित करने वाले, तीर्थंकर परमदेव को मैं [कम्मक्खय] कर्मों के क्षय में [निमित्त] कारणभूत नमस्कार करता हूँ ।

  जचंदछाबडा 

जचंदछाबडा :

यहाँ चौंसठ चँवर चौंतीस अतिशय सहित विशेषणों से तो तीर्थंकर का प्रभुत्व बताया है और प्राणियों का हित करना तथा कर्मक्षय का कारण विशेषण से दूसरे का उपकार करने वाला बताया है, इन दोनों ही कारणों से जगत में वंदने, पूजने योग्य हैं । इसलिए इसप्रकार भ्रम नहीं करना कि तीर्थंकर कैसे पूज्य हैं, यह तीर्थंकर सर्वज्ञ वीतराग हैं । उनके समवसरणादिक विभूति रचकर इन्द्रादिक भक्तजन महिमा करते हैं । इनके कुछ प्रयोजन नहीं है, स्वयं दिगम्बरत्व को धारण करते हुए अंतरीक्ष तिष्ठते हैं - ऐसा जानना ॥२९॥