अण्‍णं इमं सरीरादिगं पि होज्‍ज बाहिरं दव्‍वं ।
णाणं दंसणमादा, एवं चिंतेहि अण्‍णत्‍तं ॥23॥
अन्वयार्थ : यह जो शरीरादिक बाह्य द्रव्‍य है वह सब मुझसे अन्‍य है, ज्ञान दर्शन ही आत्‍मा है अर्थात् ज्ञान दर्शन ही मेरे हैं। इस प्रकार अन्‍यत्‍व भावना का चिंतन करो ॥२३॥