
आदौ दर्शनमुन्नतं व्रतमितः सामायिकं प्रोषध-
स्त्यागश्चैव सचित्तवस्तुनि दिवाभुक्तं तथा ब्रह्म च
नारभ्भो न परिग्रहोऽननुमतिर्नोद्रष्टमेकादश
स्थानानीति गृहिव्रते व्यसनितात्यागस्तदाद्यः स्मृतः ॥14॥
निर्मल सम्यग्दर्शन-व्रत, सामायिक अरु प्रोषधोपवास ।
सचित्त वस्तु का त्याग, दिवस में भोजन एवं ब्रह्म-विलास ॥
आरम्भ-परिग्रह-अनुमति त्याग, उद्देशिक भोजन का भी त्याग ।
ये ग्यारह स्थान ग्रहण के, पूर्व सप्त व्यसनों का त्याग ॥
अन्वयार्थ : सबसे पहले जीवादि पदार्थों में शंकादि दोष रहित श्रद्धानरूपसम्यग्दर्शन का जिसमें धारण होवे उसको दर्शन प्रतिमा कहते हैं तथा २. अहिंसादि पांच अणुव्रत तथा दिग्व्रतादि तीन गुणव्रत और देशावकाशिकादि चार शिक्षाव्रत इस प्रकार जिसमें बारहव्रत धारण किये जावे वह दूसरी व्रत प्रतिमा कहलाती है तथा ३. तीनों कालों में समता धारण करना सामायिक प्रतिमा है और ४. अष्टमी आदि चारों पर्वों में आरम्भ रहित उपवास करना चौथी प्रोषधप्रतिमा है तथा ५. जिस प्रतिमा में संचित वस्तुओं का भोग न किया जाय उसको सचितत्याग नामक पांचवीं प्रतिमा कहते हैं। तथा ६. जिस प्रतिमा के धारण करने से आजन्म स्वस्त्री तथा परस्त्री दोनों का त्याग करना पड़ता है वह ब्रह्मचर्य नामक सातवीं प्रतिमा है तथा ८. किसी प्रकार धनादि का उपार्जन न करना आरम्भत्यागनामक आठवीं प्रतिमा है और ९. जिस प्रतिमा के धारण करते समय धनधान्य दासीदासादि का त्याग किया जाता है वह नवमी परिग्रहत्याग नामक प्रतिमा है तथा १०. घर के कामों में और व्यापार में इत्यादि अनुमति का न देना अनुमति त्याग नामक दशमीप्रतिमा है तथा ग्यारहवींप्रतिमा उसको कहते हैं कि जहां पर अपने उद्देश्य से भोजन न किया गया हो ऐसे गृहस्थों के घर में मौन सहित भिक्षापूर्वक आहार करना —इस प्रकार ये ग्यारह व्रत श्रावकों के हैं, इन सब व्रतों में भी प्रथम सप्तव्यसनों का त्याग अवश्य कर देना चाहिये क्योंकि व्यसनों के बिना त्याग किये एक भी प्रतिमा धारण नहीं की जा सकती ||१४||