(आर्या)
नपरमियन्ति भवन्ति व्यसनान्यपराण्यपि प्रभूतानि ।
त्यक्तवा सत्पथमपथप्रवृत्तय: क्षुद्रबुद्धीनाम् ॥32॥
क्षुद्र-बुद्धि से श्रेष्ठ मार्ग को, तज कुमार्ग में करें गमन ।
यह प्रवृत्ति भी व्यसन जानिये, मात्र नहीं हैं सप्त व्यसन ॥
अन्वयार्थ : आचार्य महाराज और भी उपदेश देते हैं कि जिन व्यसनों का ऊपर कथन किया गया है वे ही व्यसन हैं ऐसा नहीं समझना चाहिये किन्तु और भी व्यसन हैं वे यही हैं अल्पबुद्धी मिथ्यादृष्टियों की श्रेष्ठ मार्ग को छोड़कर निकृष्ट मार्ग में प्रवृत्ति हो जाना इसलिये जीवों को चाहिये कि वे व्यसनों की रक्षा के लिये निकृष्ट मार्गों में प्रवृत्ति न करें।।३२।।