
काकिन्या अपि संग्रहो न विहितः क्षौरं यया कार्यते
चित्तक्षेपकृदस्त्रमात्रमपि वा तत्सिद्धये नाश्रितम् ।
हिंसाहेतुरहो जटाद्यपि तथा यूकाभिरप्रार्थनैः
वैराग्यादिविवर्धनाय यतिभिः केशेषु लोचः कृतः ॥42॥
कौड़ी का भी नहीं परिग्रह, अत: कटा सकते नहिं केश ।
कैंची आदि शस्त्र न रखते, क्योंकि उपजता चित में क्लेश ॥
जटा रखें तो हिंसा होती, अत: अयाचक-वृत्ति रखें ।
वैराग्यादि बढ़ाने हेतु, यति स्वयं कचलोंच करें ॥