+ शरीर का विनाश निश्चित -
उपायक्रोटिदूरक्षे स्वतस्तत इतोऽन्यतः ।
सर्वतः पतनप्राये काये कोऽयं तवाग्रहः ॥६९॥
अन्वयार्थ : करोडों उपायों को करके भी जिस शरीर का रक्षण न स्वयं किया जा सकता है और अन्य किसी के द्वारा कराया जा सकता है, किन्तु जो सब प्रकार से नष्ट ही होनेवाला है, उस शरीर की रक्षा के विषय में तेरा कौन-सा आग्रह है ? अर्थात् जब किसी भी प्रकार से उक्त शरीर की रक्षा नहीं की जा सकती है तब हठपूर्वक सब प्रकार से उसकी रक्षा का प्रयत्न करना निरर्थक है ॥६९॥
Meaning : Why your insistence on protecting the body that cannot be defended even after employing tens of millions of measures, by self or by others, and whose annihilation is certain? In other words, by no means can the body be protected from destruction; your insistence on protecting it is futile.

  भावार्थ 

भावार्थ :