
गन्तुमुच्छ्वासनिःश्वासैरभ्यस्यतज संततम् ।
लोकः पृथग तो वाञ्छत्यात्मानमजरामरम् ॥७१॥
अन्वयार्थ : यह जीव निरंतर उच्छवास और निःश्वासों के द्वारा जाने का अभ्यास करता है। परंतु अज्ञानी जन उन उच्छ्वास और निःश्वासों के द्वारा आत्मा को अजर-अमर अर्थात् जरा और मरण से रहित मानता है ॥७१॥
Meaning : The living being , through inhalation and exhalation, exhausts his age . But the ignorant, due to these very inhalation and exhalation, considers his soul to be free from decay and death.
भावार्थ
भावार्थ :
विशेषार्थ- अभिप्राय यह है कि जिस क्रम से प्राणी के उच्छ्वास और निःश्वास निकलते हैं उसी क्रम से उसकी पूर्वबद्ध आयु (जीवित) कम होती जाती है। फिर भी बहुत से प्राणी अज्ञानतावश यह समझते हैं कि उन उच्छ्वास-निःश्वासों को जितना अधिक रोका जा सकेगा उतनी ही अधिक आयु बढेगी तथा इस प्रकार से प्राणी वृद्धत्व से भी रहित होगा । यह उनका मानना अज्ञानता से परिपूर्ण है, यही यहां सूचित किया गया है ॥७१॥
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