
भावार्थ :
विशेषार्थ- दीन-दुखी प्राणियों को देखकर उनके साथ जो हृदय में सहानुभूति का भाव उदित होता है वह दया कहलाती है। यह धर्म की जड है, क्योंकि उसके बिना धर्म स्थिर रह नहीं सकता। कहा भी है- धर्मो नाम कृपामूलं सा तु जीवानुकम्पनम्। अशरण्यशरण्यत्वमतो धार्मिकलक्षणन् ॥ अर्थात् धर्म की आधारभूत दया है और उसका लक्षण है प्राणियों के साथ सहानुभूति । इसलिये जो अरक्षित प्राणियों की रक्षा करता है वही धार्मिक माना जाता है ॥क्ष. चू. 5--35॥ दूसरे शब्द से इस दया को अहिंसा कहा जा सकता है और उस अहिंसा में चूंकि सत्यादि का भी अन्तर्भाव होता है अतएव वह दया पंचव्रतात्मक ठहरती है। दम का अर्थ है राग-द्वेष के दमनपूर्वक इन्द्रियों का दमन करना- उन्हें अपने नियन्त्रण में रखना अथवा स्वेच्छाचार में प्रवृत्त न होने देना । इसे दूसरे शब्द से संयम भी कहा जा सकता है जो इन्द्रियसंयम और प्राणिसंयम के भेद से दो प्रकार का है। त्याग से अभिप्राय बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रह के त्याग एवं दान का है। समाधि से तात्पर्य धर्म और शुक्लरूप समीचीन ध्यान से हैं । इस प्रकार जो विवेकी जीव मन, वचन और काय की सरलतापूर्वक उपर्युक्त दया आदि चारों की परम्परा का अनुसरण करता है वह निश्चय से अविनश्वर पद को प्राप्त करता है ॥१०७॥ |