+ आत्मा का असाधारण स्वरूप -
ज्ञानस्वभावः स्यादात्मा स्वभावावाप्तिरच्युतिः।
तस्मादच्युतिमाकांक्षन् भावयेज्ज्ञानभावनाम् ॥१७४॥
अन्वयार्थ : आत्मा ज्ञान स्वभाववाला है और उस अनंतज्ञानादि स्वभाव की जो प्राप्ति है, यही उस आत्मा की अच्युति अर्थात् मुक्ति है। इसलिये मुक्ति की अभिलाषा करने वाले भव्य को उस ज्ञानभावना का चिन्तन करना काहिये ॥१७४॥
Meaning : The soul is of the nature of knowledge and the attainment of this own-nature, comprising infiniteknowledge, etc., is its imperishability, or liberation. Therefore, the worthy man (ascetic) desirous of imperishability, or liberation, should meditate on the knowledge-nature of the soul.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- पूर्व श्लोक में यह बतलाया था कि जितने भी जीवाजीवादि पदार्थ हैं वे सब ही विवक्षाभेद से नित्यानित्यादि अनेक स्वभाववाले हैं। यह कथंचित् नित्यानित्यादिरूपता उक्त सब ही पदार्थों का साधारण स्वरूप है । इस पर प्रश्न उपस्थित होता है कि जब यह समस्त पदार्थों का साधारण स्वरूप है तब आत्मा का असाधारण स्वरूप क्या है जिसका कि चिन्तन किया जा सके। इसके उत्तर स्वरूप यहां यह बतलाया है कि आत्मा का असाधारण स्वरूप ज्ञान है और वह अविनश्वर है । जो भी जिस पदार्थ का असाधारण स्वरूप होता है वह सदा उसके साथ ही रहता है- जैसे कि अग्नि का उष्णत्व स्वरूप । इस प्रकार यद्यपि आत्मा का स्वरूप ज्ञान है और वह अविनश्वर भी है तो भी वह अनादि काल से ज्ञानावरण एवं मोहनीय आदि कर्मों के निमित्त से विकृत (राग-द्वेषबुद्धिस्वरूप) हो रहा है जैसे कि अग्नि के संयोग से जल का शीतल स्वभाव विकृत होता है। अग्नि का संयोग हट जाने पर जिस प्रकार वह जल अपने स्वभाव में स्थित हो जाता है उसी प्रकार ज्ञानावरणादि कर्मों के हट जाने पर आत्मा भी अपने स्वाभाविक अनन्तचतुष्टय में स्थित हो जाता है। बस इसी का नाम मोक्ष है। इसीलिये यहां मुमुक्षु जन से यह प्रेरणा की गई है कि आप लोग यदि उस मोक्ष की अभिलाषा करते हैं तो आत्मा का स्वरूप जो ज्ञान है उसी का बार बार चिन्तन करें, क्योंकि, एक मात्र वही अविनश्वर स्वभाव उपादेय है- शेष सब विनश्वर पर पदार्थ (स्त्री-पुत्र एवं धन आदि) हेय हैं। इस प्रकार की भावना से उस मोक्ष की प्राप्ति हो सकेगी ॥१७४॥