
निवृत्तिं भावयेद्यावन्निवृत्यं तदभावतः ।
न वृत्तिर्न निवृत्तिश्च तदेव पदमव्ययम् ॥२३६॥
अन्वयार्थ : जब तक छोडने के योग्य शरीरादि बाह्य वस्तुओं से सम्बन्ध है तब तक निवृत्ति का विचार करना चाहिये और जब छोडने के योग्य कोई वस्तु शेष नहीं रहती है तब न तो प्रवृत्ति रहती है और न निवृत्ति भी । वही अविनश्वर मोक्षपद है ॥२३६॥
Meaning : As long as there is association with external objects worth dissociating, one should contemplate dissociation . When no objects that need dissociation remain, one contemplates neither association nor dissociation .
भावार्थ
भावार्थ :
विशेषार्थ- जब तक बाह्य वस्तुओं से अनुराग है तब तक निवृत्ति का अभ्यास करना चाहिये। तत्पश्चात् जब उन बाह्य वस्तुओं से अनुराग नष्ट हो जाता है तब उनका संयोग भी हट जाता है और इसीलिये उस समय प्रवृत्ति ओर निवृत्ति से रहित अविनश्वर मोक्ष पद प्राप्त हो जाता है ॥२३६॥
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