बोधिनी :
सिद्धान् जिनेन्द्रचन्द्रान् आचार्योपाध्यायसाधुगणान्;;वन्दित्ता सम्यग्दर्शन चारित्र लब्धि प्ररूपयाम :॥१॥
चन्द्रमा के समान सम्पूर्ण लोक के प्रकाशक अरिहंत भगवान, जो अपने समस्त कार्य सिद्ध कर कृत कृत्य हो गए अर्थात जो अष्टकर्मों का क्षय कर सिद्ध हो गए, तेरह प्रकार के चारित्र में स्वयं प्रवृत्त रहने वाले तथा अन्य साधुओं को प्रवृत्त करने वाले आचार्यों, जिनवाणी के पठन-पाठन में रत्त उपाध्यायों और रत्नत्रय के साधक साधुगणो अर्थात पंचपरमेष्ठियों को नमस्कार करके मैं (आचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती) लब्धिसार ग्रन्थ, में सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र के प्राप्ति के उपायों को कहने की प्रतिज्ञा करता हूँ ।
|