
दीव्वंति जदो णिच्चं, गुणेहिं अट्ठेहिं दिव्वभावेहिं।
भासंतदिव्वकाया, तम्हा ते वण्णिया देवा॥151॥
अन्वयार्थ : जो देवगति में होनेवाले या पाये जानेवाले परिणामों-परिणमनों से सदा सुखी रहते हैं और जो अणिमा, महिमा आदि आठ गुणों के द्वारा सदा अप्रतिहतरूप से विहार करते हैं और जिनका रूप, लावण्य, यौवन आदि सदा प्रकाशमान रहता है, उनको परमागम में देव कहा है ॥151॥
जीवतत्त्वप्रदीपिका