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गोपवती की कथा

  कथा 

कथा :

संसार द्वारा वन्दना-स्तुति किये गये और सब सुखों को देने वाले जिनभगवान् को नमस्कार कर गोपवती कथा लिखी जाती है, जिसे सुनकर हृदय में वैराग्य भावना जगती है ।

पलास गाँव में सिंहबल नामक साधारण गृहस्थ रहता था । उसकी स्त्री का नाम गोपवती था । गोपवती बड़े दुष्ट स्वभाव की स्त्री थी । उसकी दिन-रात की खटपट से बेचारा सिंहबल तबाह हो गया । उसे एक दिन पलभर के लिए भी गोपवती के द्वारा कभी सुख नहीं मिला ।

गोपवती से तंग आकर एक दिन सिंहबल पास ही के एक पद्मिनीखेट नाम के गाँव में गया । वहाँ उसने अपनी पहली स्त्री को बिना कुछ पूछे-ताछे गुप्तरीति से सिंहसेन चौधरी की सुभद्रा नाम की लड़की से, जो कि बहुत ही खूबसूरत थी, ब्याह कर लिया । किसी तरह यह बात गोपवती को मालूम हो गई । सुनते ही क्रोध के मारे वह आग-बबूला हो गई । उससे सिंहबल का यह अपराध नहीं सहा गया । वह उसे उसके अपराध की योग्य सजा देने की फिराक में लगी ।

एक दिन शाम के कोई सात बजे होंगे कि गोपवती अपने घर से निकल कर पद्मिनीखेट गई । उस समय कोई ग्यारह बज गये होंगे । गोपवती सीधी सिंहसेन के घर पहुँची । घर के लोगों ने समझा कि कोई आवश्यक काम के लिए यह आई होगी, सबेरा होने पर विशेष पूछ-ताछ करेंगे । यह विचारकर वे सब सो गये । गोपवती भी तब लोगों को दिखाने के लिए सो गई । पर जब सब को नींद आ गई, तब आप चुपके से उठी और जहाँ अपनी माँ के पास बेचारी सुभद्रा सोई हुई थी, वहाँ पहुँचकर उस पापिनी ने सुभद्रा का मस्तक काट लिया और उसे लेकर आप रात ही में अपने घर पर आ गई । सबेरा होते ही यह हाल सिंहबल को मालूम हुआ । सुभद्रा के मुर्दे को देखकर उसे बेहद दु:ख हुआ । वह खिन्न मन होकर अपने घर आ गया । उसे आया देखकर गोपवती अब उसका बड़ा आदर-सत्कार करने लगी । बड़ी स्नेह प्रगट कर उसे भोजन कराने लगी । पर सिंहबल के हृदय पर तो सुभद्रा के मरण की बड़ी गहरी चोट लगी थी, इसलिए उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था, और वह सदा उदास रहा करता था । और सच भी है, एक महादु:खी को भोजन वगैरह में क्या प्रीति होती होगी ? सिंहबल की सुभद्रा के लिए यह दशा देख गोपवती का क्रोध और भी बढ़ा गया । एक दिन बेचारा सिंहबल उदास मन से भोजन कर रहा था । यह देख गोपवती ने क्रोध से सुभद्रा का मस्तक लाकर उसकी थाली में डाल दिया और बोली - हाँ, बिना इसके देखे तुझे भोजन अच्छा नहीं लगता था; अब तो अच्छा लगेगा न ? सुभद्रा के सिर को देखकर सिंहबल काँप गया । वह 'हाय ! यह तो महाराक्षसी है' इस प्रकार जोर से चिल्लाकर डर के मारे भागने लगा । इतने में राक्षसी गोपवती ने पास ही पड़े हुए भाले को उठाकर सिंहबल की पीठ में इतने जोर से मारा कि वह उसी समय तड़फड़ाकर वहीं पर ढेर हो गया । गोपवती के ऐसे घृणित चरित को देखकर बुद्धिमानों को उचित है कि वे दुष्ट स्त्रियों पर कभी विश्वास न लावें ।

वे कर्मों के जीतने वाले जिनेन्द्र भगवान् संसार में सर्वश्रेष्ठ कहलावें, जो कामरूपी हाथी के मारने को सिंह हैं, संसार का भय मिटानेवाले हैं, शांति, स्वर्ग और मोक्ष के देने वाले हैं और मोक्षरूपी रमणी-रत्न के स्वामी हैं । वे मुझे भी शांति प्रदान करें ।