+ लौकिक ब्रह्मा की कथा -
लौकिक ब्रह्मा की कथा

  कथा 

कथा :

संसार के द्वारा पूजे गये भगवान् आदि ब्रह्मा (आदिनाथ स्‍वामी) को नमस्‍कार कर, देवपुत्र ब्रह्मा की कथा लिखी जाती है ।

कुछ असमझ लोग ऐसा कहते है कि एक दिन ब्रह्माजी के मन में आया कि मैं इन्‍द्रादिकों का पद छीनकर सर्वश्रेष्‍ठ हो जाऊँ, और इसलिये उन्‍होंने एक भयंकर वन में हाथ ऊँचा किये बड़ी घोर तपस्‍या की । वे कोई साढ़े चार हजार वर्ष पर्यन्‍त (यह वर्ष संख्‍या देवों के वर्ष के हिसाब से है, जो कि मनुष्‍यों के वर्षो से कई गुणी होती है । ) एक ही पाँव से खड़े रहकर तप करते रहे और केवल वायु का आहार करते रहे । ब्रह्माजी की यह कठिन तपस्‍या निष्‍फल न गई । इन्‍द्रादिकों का आसन हिल गया । उन्‍हें अपने राज्‍य नष्‍ट होने का बड़ा भय हुआ । तब उन्‍होंने ब्रह्माजी को तप भ्रष्‍ट करने के लिये स्‍वर्ग की एक तिलोत्तमा नाम की वेश्‍या को, जो कि गन्‍धर्व देवों के समान गाने और बड़ी सुन्‍दर नाचने वाली थी, भेजा । तिलोत्तमा उनके पास आई और अनेक प्रकार के हाव-भाव-विलास बतला-बतलाकर नाचने लगी । तिलोत्तमा का नृत्‍य, तिलोत्तमा की भुवन मनोहारिणी रूपराशि और उसका हाव-भाव-विलास देखकर ब्रह्माजी तप से डगमगे । उन्‍होंने हजारों वर्षो को तपस्‍या को एक क्षणभर में नष्‍ट कर अपने को काम के हाथ सौंप दिया । वे आँखे फाड़-फाड़कर तिलोत्तमा की रूपराशि को बड़े चाव से देखने लगे । तिलोत्तमा ने जब देखा कि हाँ योगिराज अब अपने आप में नहीं हैं और आँखे फाड़-फाड़कर मेरी ही ओर देख रहे हैं, तब उनकी इच्‍छा को और जागृत करने के लिये वह उनकी बायीं ओर आकर नाचने लगी । ब्रह्माजी ने तब अपनी हजारों वर्षों की तपस्‍या के प्रभाव से अपना दूसरा मुँह बाँयी ओर बना लिया । तिलोत्तमा जब उनकी पीठ पीछे आकर नाचने लगी । ब्रह्माजी ने तब तीसरा मुँह पीछे की ओर बना लिया । तिलोत्‍तमा फिर उनकी दाहिनी ओर जाकर नाचने लगी,ब्रह्माजी ने उस ओर भी मुँह बना लिया । अन्‍त में तिलोत्तमा आकाश में जाकर नाचने लगी । तब ब्रह्माजी ने अपना पाँचवा मुँह गधे के मुख के आकार का बनाया । कारण अब उनकी तपस्‍या का, फल बहुत थोड़ा बच रहा था । मतलब यह कि तिलोत्तमा ने जिस प्रकार ब्रह्माजी को नचाया वे उसी प्रकार नाचे । इस प्रकार उन्‍हें तप से भ्रष्‍ट कर और उनके हृदय में काम की आग धधकाकर चालाक तिलोत्तमा अछूती की अछूती स्‍वर्ग को चली गई और बेचारे ब्रह्माजी काम के तीव्र वेग से मूर्च्‍छा खाकर पृथ्‍वी पर आ गिरे । तिलोत्तमा ने सब हाल इन्‍द्र से कहकर कहा- प्रभो, अब आप अनन्‍त काल तक सुख से रहें । मैं ब्रह्माजी की खूब ही गति बना आई हूँ । तब इन्‍द्र ने बहुत खुश होकर उससे पूछा- हाँ तिलोत्तमा, तू ब्रह्माजी के पास ठहरी नहीं ? तिलोत्तमा बोली- वाह ! प्रभो, भली उस बूढ़े की और मेरी आपने जोड़ी मिलाई ! मैं तो कभी उसके पास खड़ी तक नहीं रह सकती । यह सुन इन्‍द्र को ब्रह्माजी की हालत पर बड़ी दया आई । उसने फिर दया के वश होकर ब्रह्माजी की शान्ति के लिये उर्वशी नाम की एक दूसरी सुन्‍दर वेश्‍या को उनके पास भेजा । इन्‍द्र की आज्ञा सिर पर चढ़ाकर उर्वशी ब्रह्माजी के पास आई । उनके पाँवों को छूकर उन्‍हें उसने सचेत किया । ब्रह्माजी पाँव तले एक स्‍वर्गीय सुन्‍दर को बैठी देखकर बहुत प्रसन्‍न हुए । उन्‍हें मानो आज उनकी कड़ी तपस्‍या का फल मिल गया । ब्रह्माजी अब घर बनाकर उर्वशी के साथ रहने लगे और मनमाने भोग भोगने लगे; तब से वे लौकिक ब्रह्मा कहलाने लगे ।

बड़े दु:ख की बात है कि असमझ लोग देव या देव के सच्‍चे स्‍वरूप को जानते नहीं और जैसा अपनी इच्‍छा में आता है उन्‍मत्त की तरह झूठा ही कह दिया करते हैं । क्‍या कोई हठ करके इन्‍द्रादिकों का पद छीन सकता है ? और जो ब्रह्मा तीन लोक का स्‍वामी देव कहा जाता है वह क्‍या ऐसा नीच कर्म करेगा ? समझदारों को ये बातें झूठी समझना चाहिए । और जिसमें ऐसी बातें हैं वह कभी ब्रह्मा नहीं हो सकता । जैन शास्‍त्रों में ब्रह्मा उसे कहा है, जो मोक्षमार्ग का बताने वाला, सच्‍चे ज्ञान और सच्‍चे चारित्र की प्राप्ति कराने वाला और आत्‍मा को निजस्‍वरूप में स्थिर करने वाला है । वह अर्हन्‍त, सिद्ध आचार्य, उपाध्‍याय और साधु इन अवस्‍थाओं से पाँच प्रकार का है । इनके सिवा संसार में और कोई ब्रह्मा नहीं है । क्‍योंकि राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि दोषों से युक्‍त कभी ब्रह्मा-देव हो ही नहीं सकता । किन्‍तु जो इन रागादि दोषों से रहित हैं, लोक और अलोक के जानने वाले हैं और केवल ज्ञान रूपी नेत्र से युक्‍त हैं वे ही ऋषभ भगवान् मेरे सच्‍चे ब्रह्मा हैं ।

वे परम पवित्र आदिनाथ जिनेन्‍द्र मुझे संसार के दु:खों से छुटाकर शांति प्रदान करें, जो भव्‍यजनरूपी कमलों को प्रफुल्लित करने के लिए सूरज के समान हैं, संसार-समुद्र से पार करने वाले हैं, गुणों के समुद्र हैं, स्‍वर्ग और मोक्ष का पवित्र सुख देने वाले हैं, इन्‍द्रादि देवों द्वारा पूज्‍य हैं और केवलज्ञान द्वारा सारे संसार के जानने और देखने वाले हैं ।