पं-रत्नचन्द-मुख्तार
+
आलापपद्धति का प्रयोजन
-
द्रव्यलक्षणसिद्यर्थं स्वभावसिद्यर्थं च ॥3॥
अन्वयार्थ :
द्रव्य के लक्षण की सिद्धि के लिये और पदार्थों के स्वभाव की सिद्धि के लिये इस ग्रंथ की रचना हुई है ।
मुख्तार