+ द्रव्यों के नाम -
जीव-पुद्गल-धर्माधर्माकाश-काल-द्रव्‍याणि ॥5॥
अन्वयार्थ : जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये छह द्रव्‍य हैं ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

जीव द्रव्‍य राजयोगमयी अथवा चैतन्‍यमयी है । वह संसारी और मुक्‍त दो प्रकार का है । संसारी जीव त्रस और स्‍थावर के भेद से दो प्रकार के है ।

स्‍पर्श, रस, गंघ और वर्ण जिसमें पाये जावें वह पुद्गल-द्रव्‍य है ।

जो जीव और पुद्गल इन दो द्रव्‍यों को चलने में सहकारी कारण हो, जिसके बिना जीव और पुद्गल की गति नहीं हो सकती, वह धर्म-द्रव्‍य है । जैसे, म‍छलियों के चलने में जल सहकारी कारण होता है -- जहां तक जल होता है वहीं तक मछलियों का गमन होता है । मछलियों में गमन की शक्ति होते हुए भी जल के अभाव में म‍छलियों का गमन नहीं होता है अर्थात् जल से आगे मछलियाँ पृथ्‍वी पर गमन नहीं कर सकती है । इसीलिये धर्म-द्रव्‍य का लक्षण गति-हेतुत्‍व कहा गया है । जहां तक धर्म-द्रव्‍य है, वहां तक ही लोकाकाश है । लोक और अलोक के विभाजन में धर्म-द्रव्‍य कारण है । कहा भी है -

लोयालोयविभेयं गमणं ठाणं च जाण हेदूहिं ।
जद णहु ताणं हेऊ किह लोयालोयववहारं ॥न.च.१३४॥
अर्थ – लोक और अलोक का भेद तथा गमन और ठहराना, ये सब बिना कारणों के नहीं हो सकते । यदि इनका कोई कारण न होता तो लोक-अलोक व्यवहार कैसे होता ?

जो जीव और पुद्गल को ठहरने में सहकारी कारण हो वह अधर्म-द्रव्‍य है । जैसे, पथिक को ठहरने में छाया सहकारी कारण है । इसके प्रदेश भी धर्म-द्रव्‍य के समान है ।

जो समस्‍त द्रव्‍यों को अवगाहन देवे वह आकाश द्रव्‍य है । क्षेत्र की अपेक्षा आकाश-द्रव्‍य सब द्रव्‍यों से बड़ा है, सर्वे-व्‍यापी है, इसलिए यह समस्‍त द्रव्‍यों को अवकाश देने में समर्थ है । अन्‍य द्रव्‍य भी परस्‍पर अवगाहन देते है, किन्‍तु सर्व-व्‍यापी नहीं होने से वे समस्‍त द्रव्‍यों को अवगाहन नहीं दे सकते, इसीलिये अवगाहन-हेतुत्‍व आकाश-द्रव्‍य का लक्षण कहा गया है । धर्म-द्रव्‍य के अभाव के कारण अलोकाकाश में कोई द्रव्‍य नहीं जाता है । इसलिये वह किसी को अवगाहन नहीं देता है । फिर भी उसमें अवगाहन दान की शक्ति है । इस प्रकार अलोकाकाश में भी अवगाहन-हेतुत्‍व लक्षण घटित हो जाता है । इससे, कार्य होने पर ही निमित्त कारण कहलाता है, इस सिद्धान्‍त का खण्‍डन हो जाता है । निर्मित्त अपने कारणपने की शक्ति से निमित्त कहलाता है ।

जो द्रव्‍यों के वर्तन में सहकारी कारण हो वह काल-द्रव्‍य है । काल के अभाव में पदार्थों का परिणमन नहीं होगा । परिणमन न हो तो द्रव्‍य व पर्याय भी न होगी । सर्व शून्‍य का प्रसंग आयेगा ।