+ मंगलाचरण -
पणमिय वीरजिणिंदं सुरसेणणमंसियं विमलणाणं ।
वोच्छं दंसणसारं जह कहियं पुव्वसूरीहिं ॥1॥
प्रणम्य वीरजिनेन्द्रं सुरसेननमस्कृतं विमलज्ञानम् ।
वक्ष्ये दर्शनसारं यथा कथितं पूर्वसूरिभि: ॥१॥
अन्वयार्थ : जिनका ज्ञान निर्मल है और देवसमूह जिन्हें नमस्कार करते हैं, उन महावीर भगवान को प्रणाम करके, मैं पूर्वाचार्यों के कथनानुसार 'दर्शनसार' अर्थात्‌ दर्शनों या जुदा-जुदा मतों का सार कहता हूँ ।