+ जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति बंध का काल और स्वामी -
जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति बंध का काल और स्वामी

  विशेष 

विशेष :


स्थिति बंध
जघन्य बंध उत्कृष्ट बंध
काल स्वामी काल (कोडा-कोडी सागर) स्वामी
ज्ञानावरणी - 5 अंतर्मुहूर्त सूक्ष्म साम्पराय क्षपक 30 चारों गति के उत्कृष्ट व मध्यम संकलेश मिथ्यादृष्टि
दर्शनावरणी चक्षु, अचक्षु, अवधी, केवल अंतर्मुहूर्त 30
5 निद्रा 3/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 30
वेदनीय साता 12 मुहर्त सूक्ष्म साम्पराय क्षपक 15
असाता 3/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 30
अंतराय - 5 अंतर्मुहूर्त सूक्ष्म साम्पराय क्षपक 30
मोहनीय दर्शन 1 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 70
चारित्र अनंतानुबंधी 4/7 सागर 40
अप्रत्याख्यानावरणी 4/7 सागर
प्रत्याख्यानावरणी 4/7 सागर
संज्वलन क्रोध 2 मास अनिवृत्तिकरण क्षपक
संज्वलन मान 1 मास
संज्वलन माया 15 दिन
संज्वलन लोभ अंतर्मुहूर्त
हास्य, रति 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 10
अरती, शोक, भय, जुगुप्सा 20
वेद नपुंसक 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 20
पुरुष 8 वर्ष अनिवृत्तिकरण क्षपक 10
स्त्री 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 15
आयु मनुष्य क्षुद्र-भव कर्मभूमि संकलेश-युक्त मि. तिर्यञ्च / मनुष्य 3 पल्य कर्मभूमि विशुद्धि-युक्त मि. संज्ञी तिर्यञ्च / मनुष्य
तिर्यञ्च
नरक 10000 वर्ष मि. संज्ञी पंचे. ति. संक्लेश परिणत या सर्व-विशुद्ध संज्ञी पंचे. पर्याप्त 33 सागर कर्मभूमि संक्लेश-युक्त मि. संज्ञी तिर्यञ्च / मनुष्य
देव संज्ञी-असंज्ञी तिर्यञ्च / मनुष्य अप्रमत्त को सन्मुख प्रमत्त-विरत
नाम गति/आनुपूर्वी देव 2000/7 सागर सर्व विशुद्ध असंज्ञी पंचेंद्रिय 10 मि. संज्ञी पर्याप्त तिर्यञ्च / मनुष्य
मनुष्य 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 15 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
तिर्यञ्च 20 मि. देव / नारकी
नरक 2000/7 सागर संक्लेश-युक्त असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त मिथ्यादृष्टि संज्ञी पर्याप्त तिर्यञ्च / मनुष्य
जाति एकेन्द्रिय 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 20 मि. ईशान देव
विकलेंद्रिय 18 मि. संज्ञी पर्याप्त तिर्यञ्च / मनुष्य
पंचेंद्रिय 20 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
शरीर/अंगोपांग औदारिक 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 20 मि. देव / नारकी
वैक्रियक 2000/7 सागर सर्व-विशुद्ध असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त मि. संज्ञी पर्याप्त तिर्यञ्च / मनुष्य
आहारक अंत: कोडा-कोडी सागर अप्रमत्त अंत: कोडा-कोडी सागर अपूर्वकरण क्षपक के 1-7 भाग तक
शरीर तैजस 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 20 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
कार्मण
निर्माण, वर्ण-चतुष्क
संहनन, संस्थान वज्र-ऋषभनाराच, समचतुरस्र 10 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
वज्र-नाराच, न्यग्रोध 12
नाराच, स्वाति 14
अर्ध-नाराच, कुब्जक 16
कीलक, वामन 18
हुंडक संस्थान 20
सृपाटिका संहनन मि. देव / नारकी
अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रत्येक, त्रस, बादर, पर्याप्त, अशुभ, अस्थिर, दुर्भग, दु:स्वर, अनादेय 20 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
आतप, स्थावर मिथ्यादृष्टि ईशान देव
उद्योत मि. देव नारकी
विहायोगति प्रशस्त 10 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
अप्रशस्त 20
सूक्ष्म, साधारण, अपर्याप्त 18 मि. संज्ञी पर्याप्त तिर्यञ्च / मनुष्य
सुभग, सुस्वर, शुभ, स्थिर, आदेय 10 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
अयश:कीर्ति 20
यश:कीर्ति 8 मुहूर्त सूक्ष्म-सांपरायिक क्षपक चरम समय 10 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
तीर्थंकर अंत: कोडा-कोडी सागर अपूर्वकरण क्षपक 1-5 भाग तक अंत: कोडा-कोडी सागर अविरत सम्यगदृष्टि
गोत्र उच्च 8 मुहूर्त सूक्ष्म साम्पराय क्षपक 10 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
नीच 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 20
जघन्य स्थिति में एकेन्द्रिय स्वामी हो तो काल को पल्य के असंख्यातवें भाग से घटाएँ
जघन्य स्थिति में असंज्ञी पंचेंद्रिय स्वामी हो तो काल को पल्य के संख्यातवें भाग से घटाएँ
गोम्मटसार कर्मकांड - बंधोदय-सत्त्व अधिकार गाथा 127 से