विशेष :
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एक जीव की अपेक्षा नाम कर्म के उदय-स्थान |
उदय संख्या |
स्थान |
प्रकृतियों का विवरण |
स्वामी |
20 |
1 |
ध्रु/12, यु/8 [पर्याप्त-पंचेंद्रिय-मनुष्य-त्रस-बादर-सुभग-आदेय-यश] |
समुद्घात सामान्य केवली [प्रतर व लोकपूरण] |
21 |
2 |
ध्रु/12, यु/8, आनु/1 |
चारों गति के विग्रह-गति में जीव |
ध्रु/12, यु/8 [पर्याप्त-पंचेंद्रिय-मनुष्य-त्रस-बादर-सुभग-आदेय-यश], तीर्थंकर |
समुद्घात तीर्थंकर केवली [प्रतर व लोकपूरण] |
24 |
1 |
ध्रु/12, यु/8 [अपर्याप्त-एकेन्द्रिय-तिर्यञ्च-स्थावर], श/3, *उपघात |
एकेन्द्रिय के मिश्र शरीर का काल |
25 |
3 |
ध्रु/12, यु/8 [पर्याप्त-एकेन्द्रिय-तिर्यञ्च-स्थावर], श/3, उपघात, परघात |
एकेंद्रिय का शरीर पर्याप्ति-काल |
ध्रु/12, यु/8 [पर्याप्त-पंचेंद्रिय-मनुष्य-त्रस,बादर], श/3, उपघात, आहारक-अङ्गोपांग |
आहारक-शरीर का मिश्र-काल |
ध्रु/12, यु/8 [पर्याप्त-पंचेंद्रिय-*देव/नारकी-त्रस], श/3, उपघात, वैक्रियिक-अङ्गोपांग |
देव-नारकी के शरीर का मिश्र-काल |
26 |
9 |
2 |
ध्रु/12, यु/8 [पर्याप्त-एकेन्द्रिय-तिर्यञ्च-स्थावर], श/3, उपघात, परघात, आतप / उद्योत |
एकेंद्रिय का शरीर पर्याप्ति-काल |
1 |
ध्रु/12, यु/8 [पर्याप्त-एकेन्द्रिय-तिर्यञ्च-स्थावर], श/3, उपघात, परघात, उच्छ्वास |
एकेंद्रिय का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल |
6 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, औदारिक-अङ्गोपांग, एक संहनन |
औदारिक-मिश्र काल [2 से 5 इंद्रिय तिर्यञ्च / मनुष्य / सामान्य केवली] |
27 |
6 |
1 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, आहारक-अङ्गोपांग, प्रशस्त-विहायोगति |
आहारक शरीर पर्याप्ति-काल |
1 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, औदारिक-अङ्गोपांग, वज्रऋषभनाराच-संहनन |
तीर्थंकर समुधात केवली का औदारिक-मिश्र काल |
2 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, वैक्रियिक-अङ्गोपांग, विहायोगति [प्र./अप्र.] |
देव-नारकी का शरीर-पर्याप्ति काल |
2 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, उच्छ्वास, आतप / उद्योत |
एकेंद्रिय का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल |
28 |
17 |
12 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, संहनन [कोई एक], विहायोगति [प्र./अप्र.] |
सामान्य मनुष्य और मूल शरीर में प्रवेश करता सामान्य-केवली का शरीर पर्याप्ति-काल |
2 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, सृपाटिका संहनन, विहायोगति [प्र./अप्र.] |
2-5 इंद्रिय का शरीर पर्याप्ति-काल |
1 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, आहारक-अङ्गोपांग, उच्छ्वास, प्र. विहायोगति |
आहारक का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल |
2 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, वैक्रियिक-अङ्गोपांग, उच्छ्वास, विहायोगति [प्र./अप्र.] |
देव-नारकी का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल |
29 |
20 |
12 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, संहनन [कोई एक], विहायोगति [प्र./अप्र.], उच्छ्वास |
सामान्य मनुष्य और मूल शरीर में प्रवेश करता सामान्य-केवली का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल |
2 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, उद्योत, औदारिक-अङ्गोपांग, सृपाटिका संहनन, विहायोगति [प्र./अप्र.] |
2-5 इंद्रिय का शरीर पर्याप्ति-काल |
2 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, सृपाटिका संहनन, विहायोगति [प्र./अप्र.], उच्छ्वास |
2-5 इंद्रिय का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल |
1 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, वज्रऋषभनाराच-संहनन, प्र. विहायोगति, तीर्थंकर |
समुद्घात तीर्थंकर-केवली का शरीर पर्याप्ति-काल |
1 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, आहारक-अङ्गोपांग, उच्छ्वास, प्र. विहायोगति, सुस्वर |
आहारक का भाषा पर्याप्ति-काल |
2 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, वैक्रियिक-अङ्गोपांग, उच्छ्वास, विहायोगति [प्र./अप्र.], सुस्वर/दु:स्वर |
देव-नारकी का भाषा पर्याप्ति-काल |
30 |
9 |
2 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, उद्योत, औदारिक-अङ्गोपांग, सृपाटिका संहनन, विहायोगति [प्र./अप्र.], उच्छ्वास |
2-5 इंद्रिय का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल |
4 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, सृपाटिका संहनन, विहायोगति [प्र./अप्र.], उच्छ्वास, सुस्वर/दु:स्वर |
त्रस उद्योत-रहित तिर्यञ्च व सामान्य मनुष्य का भाषा-पर्याप्ति काल |
1 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, वज्रऋषभनाराच-संहनन, प्र. विहायोगति, उच्छ्वास, तीर्थंकर |
समुद्घात तीर्थंकर केवली का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल |
2 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, वज्रऋषभनाराच-संहनन, प्र. विहायोगति, उच्छ्वास, सुस्वर/दु:स्वर |
सामान्य समुद्घात केवली का भाषा पर्याप्ति-काल |
31 |
5 |
1 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, वज्रऋषभनाराच-संहनन, प्र. विहायोगति, उच्छ्वास, तीर्थंकर, सुस्वर |
तीर्थंकर-केवली का भाषा पर्याप्ति-काल |
4 |
ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, उद्योत, औदारिक-अङ्गोपांग, १ संहनन, विहायोगति [प्र./अप्र.], उच्छ्वास, सुस्वर/दु:स्वर |
त्रस उद्योत-सहित तिर्यञ्च का भाषा-पर्याप्ति काल |
8 |
1 |
मनुष्य-गति, पंचेंद्रिय-जाति, सुभग, आदेय, यश:कीर्ति, त्रस, बादर, पर्याप्त |
अयोग-केवली |
9 |
1 |
मनुष्य-गति, पंचेंद्रिय-जाति, सुभग, आदेय, यश:कीर्ति, त्रस, बादर, पर्याप्त, तीर्थंकर |
अयोग-केवली तीर्थंकर |
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ध्रु/12 = ध्रुवोदयी 12 (तेजस, कार्माण, वर्ण-चतुष्क, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, अगुरुलघु, निर्माण) |
यु/8 = युगल 8 (४ गति, ५ जाति, त्रस-स्थावर, बादर-सूक्ष्म, पर्याप्त-अपर्याप्त, सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय, यश-अयश) [इन ८ योगलों की कुल २१ प्रकृतियों में से प्रत्येक-युगल में से १, इसप्रकार युगपत ८ का ही उदय होता है] |
श/३ = शरीर आदि की 3 (३ शरीर [औदारिक, वैक्रियिक, आहारक], ६ संस्थान, प्रत्येक-साधारण में से युगपत ३ का ही उदय होता है) |
नाम-कर्म की ६७ प्रकृतियों में उदय संबंधी नियम
- [ध्रु/१२] -- 12 ध्रुवोदयी प्रकृतियों (तेजस, कार्माण, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, अगुरुलघु, निर्माण) का उदय 13 गुणस्थान तक ध्रुव रूप से होता है ।
- [यु/8] -- 8-युगल प्रकृतियों (गति, जाति, त्रस-स्थावर, बादर-सूक्ष्म, पर्याप्त-अपर्याप्त, सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय, यश-अयश) में से प्रत्येक युगल की अन्यतम एक-एक करके युगपत 8 ही उदय में आती हैं; 14 गुणस्थान तक ।
- [आनु/१] -- चार आनुपूर्वी में से कोई एक ही का उदय विग्रह-गति में होता है ।
- कार्मण-काल के बाद सभी जीवों को 2 शरीर (औदारिक, वैक्रियिक) में से एक, 6 संस्थान में से एक, प्रत्येक-साधारण में से एक और उपघात इसप्रकार युगपत 4 के उदय का नियम है ।
- शरीर पर्याप्ति के बाद परघात का उदय नियम से है ।
- त्रस-जीव को विग्रह गति के बाद 3 अंगोपांग में से किसी एक का तथा उनमें भी औदारिक शरीर वाले के 6 संहनन में से किसी एक का उदय का नियम है ।
- बादर प्रत्येक तिर्यञ्चों में आतप-उद्योत में से किसी एक का उदय हो सकता है, आतप का उदय पृथ्वी-कायिक में ही और उद्योत का उदय सभी जातियों (1 से 5) में हो सकता है ।
- त्रस-पर्याप्त जीव में प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति का उदय शरीर पर्याप्ति के बाद नियम से है
- उच्छ्वास का उदय उच्छ्वास पर्याप्ति के बाद सभी जातियों में है
- त्रस-पर्याप्त जीव को भाषा पर्याप्ति के बाद सुस्वर-दुस्वर में से किसी एक के उदय का नियम है ।
- [तीर्थ/१] -- तीर्थंकर प्रकृति का उदय भजनीय है ।
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