विशेष :
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वेद-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम |
| कर्म |
अन्तर |
| जघन्य |
उत्कृष्ट |
| स्त्री |
५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजस, कार्मण, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, तीर्थंकर, ५ अन्तराय |
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| स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, ४ अनन्तानुबन्धी |
अन्तर्मुहूर्त |
कुछ कम 55 पल्य |
| २ वेदनीय, ५ नोकषाय, पंचेन्द्रियजाति, समचतुरस्र-संस्थान, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त-विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिरादि तीन युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय, उच्चगोत्र एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त |
एक समय |
अंतर्मुहूर्त |
| आठ कषाय |
अन्तर्मुहूर्त |
कुछ कम पूर्वकोटि |
| स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय जाति, ५ संस्थान, ५ संहनन, आताप, उद्योत, अप्रशस्त-विहायोगति, स्थावर, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीच गोत्र |
एक समय |
कुछ कम 55 पल्य |
| नरकायु |
अन्तमहूर्त |
कुछ कम कोटिपूर्व का त्रिभाग |
| तिर्यंचायु, मनुष्यायु |
अन्तर्मुहूर्त |
पल्यशत पृथक्त्व |
| कोई 8 मोह की प्रकृतियों की सत्तावाला जीव स्त्रीवेदी था। मरणकर देवों में उत्पन्न हुआ। छहों पर्याप्तियों को पूर्ण कर (1) विश्राम ले (2) विशुद्ध हो (3) वेदकसम्यक्त्वी हुआ,(४) पश्चात् मिथ्यात्वी हो गया। तिर्यंच आयु अथवा मनुष्यायु का बन्ध कर मरण किया और पल्यशत पृथक्त्व कालप्रमाण परिभ्रमण कर तिर्यञ्चायु या मनुष्यायु का बन्ध कर सम्यक्त्वसहित हो मरण किया। इस प्रकार असंयत सम्यकदृष्टि स्त्रीवेदी जीवकी अपेक्षा पल्यशत पृथक्त्व प्रमाण अन्तर होता है। (ध०टी०,अन्तरा० पृ०१६) |
| देवायु |
अन्तर्मुहूर्त |
58 पल्योपम पूर्वकोटि पृथक्त्व |
| दो गति, तीन जाति, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक अंगोपांग, दो आनुपूर्वी, सूक्ष्म, अपर्याप्तक, साधारण |
एक समय |
कुछ अधिक 55 पल्य |
| मनुष्य-द्विक, औदारिक-द्विक, वज्र-वृषभसंहनन |
एक समय |
कुछ कम तीन पल्य |
| आहारक-द्विक |
अन्तर्मुहूर्त |
पल्यशत पृथक्त्व |
| पुरुष |
५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ४ संज्ज्वलन, ५ अन्तराय |
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| स्त्यानगृद्धि त्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४ |
अंतर्मुहूर्त |
कुछ कम १३२ सागर |
| ८ कषाय |
अंतर्मुहूर्त |
कुछ कम एक कोटि पूर्व |
| स्त्रीवेद, नरकायु |
१ समय |
कुछ अधिक १३२ सागर |
| निद्रा, प्रचला |
अंतर्मुहूर्त |
अंतर्मुहूर्त |
| २ वेदनीय, ७ नोकषाय, पंचेन्द्रिय-जाति, तैजस / कार्मण शरीर, समचतुरस्र-संस्थान, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु-चतुष्क, प्रशस्त-विहायोगति, त्रस-चतुष्क, स्थिरादि दो युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थंकर, उच्च-गोत्र |
१ समय |
अंतर्मुहूर्त |
| नपुंसकवेद, ५ संस्थान, ५ संहनन, अप्रशस्त-विहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीच-गोत्र |
१ समय |
कुछ कम तीन पल्य अधिक दो छयासठ सागर |
| मनुष्य,तिर्यञ्चायु |
अंतर्मुहूर्त |
सागरोपम शत-पृथक्त्व |
| देवायु |
अंतर्मुहूर्त |
साधिक तेंतीस सागर |
| नरक-द्विक, ४ जाति, आताप, उद्योत, स्थावर-चतुष्क, तिर्यञ्च-द्विक |
१ समय |
63 सागरोपम |
| मनुष्यगतिपंचक |
१ समय |
साधिक तीन पल्य |
| सुर-चतुष्क |
१ समय |
साधिक तेंतीस सागर |
| आहारकद्विक |
अंतर्मुहूर्त |
सागर शत-पृथक्त्व |
| नपुंसक |
५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजस, कार्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, ५ अन्तराय |
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| स्त्यानगृद्धित्रिक , मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी 4, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, तिथंचगति, 5 संस्थान, 5 संहनन, तिर्यचानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीचगोत्रका जघन्य अन्तर्मुहूर्त अथवा एक समय, उत्कृष्ट |
अन्तर्मुहूर्त अथवा एक समय |
कुछ कम तेंतीस सागर |
| २ वेदनीय, ५ नोकषाय, पंचेन्द्रिय-जाति, समचतुरस्र-संस्थान, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त-विहायोगति, त्रस-चतुष्क, स्थिरादि दो युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय |
१ समय |
अंतर्मुहूर्त |
| ८ कषाय |
अंतर्मुहूर्त |
कुछ कम एक कोटि पूर्व |
| २ आयु (नरक, मनुष्य) |
अंतर्मुहूर्त |
असंख्यात पुद्गलपरावर्तन |
| तिर्यञ्चायु |
अंतर्मुहूर्त |
सागर शतपृथक्त्व |
| देवायु |
अंतर्मुहूर्त |
कुछ कम पूर्वकोटिका त्रिभाग |
| वैक्रियिक-षट्क |
१ समय |
असंख्यात पुद्गलपरावर्तन |
| मनुष्य गति, मनुष्य आनुपूर्वी, उच्च गोत्र |
१ समय |
असंख्यात लोक प्रमाण |
| जाति-चतुष्क, आताप, स्थावर-चतुष्क |
१ समय |
साधिक तेंतीस सागर |
| औदारिक-द्विक, वज्र-वृषभसंहनन |
१ समय |
कुछ कम पूर्वकोटि |
| आहारकद्विक |
अंतर्मुहूर्त |
कुछ कम अर्ध पुद्गलपरावर्तन |
| तीर्थंकर |
अंतर्मुहूर्त |
अंतर्मुहूर्त |
| अपगत-वेद |
५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, यश:कीर्ति, उच्चगोत्र, ५ अन्तराय |
अंतर्मुहूर्त |
अंतर्मुहूर्त |
| साता वेदनीय |
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महबंधो - 1 (अंतराणुगमपरूवणा) |
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