| अंग-प्रविष्ट |
1 |
आचारांग |
18000 |
|
चर्या का विधान आठ शुद्धि, पाँच समिति, तीन गुप्ति आदि रूप से वर्णित |
| 2 |
सूत्रकृतांग |
36000 |
|
ज्ञान-विनय, क्या कल्प्य है क्या अकल्प्य है, छेदोपस्थापनादि, व्यवहारधर्म की क्रियाओं का निरूपण |
| 3 |
स्थानांग |
42000 |
|
एक-एक दो-दो आदि के रूप से अर्थों का वर्णन |
| 4 |
समवायांग |
164000 |
|
सब पदार्थों की समानता रूप से समवाय का विचार |
| 5 |
व्याख्या प्रज्ञप्ति(श्वे.भगवतीसूत्र) |
22800084000 |
|
'जीव है कि नहीं' आदि साठ हज़ार प्रश्नों के उत्तर |
| 6 |
ज्ञातृधर्मकथा |
556000 |
|
अनेक आख्यान और उपाख्यानों का निरूपण |
| 7 |
उपासकाध्ययन |
1170000 |
|
श्रावकधर्म का विशेष विवेचन |
| 8 |
अंतकृद्दशांग |
2328000 |
|
प्रत्येक तीर्थंकर के समय में होने वाले उन दश-दश अंतकृत केवलियों का वर्णन है जिनने भयंकर उपसर्गों को सहकर मुक्ति प्राप्त की |
| 9 |
अनुत्तरोपपादिकदशांग |
9244000 |
|
प्रत्येक तीर्थंकर के समय में होने वाले उन दश-दश मुनियों का वर्णन है जिनने दारुण उपसर्गों को सहकर ...पाँच अनुत्तर विमानों में जन्म लिया |
| 10 |
प्रश्न व्याकरण |
9316000 |
|
युक्ति और नयों के द्वारा अनेक आक्षेप और विक्षेप रूप प्रश्नों का उत्तर |
| 11 |
विपाक सूत्र |
18400000 |
|
पुण्य और पाप के विपाक का विचार |
| 12 |
दृष्टिवाद |
परिकर्म |
चंद्रप्रज्ञप्ति |
3605000 |
|
चंद्रमा की आयु, परिवार, ऋद्धि, गति और बिंब की ऊँचाई आदि का वर्णन |
| सूर्यप्रज्ञप्ति |
303000 |
|
सूर्य की आयु, भोग, उपभोग, परिवार, ऋद्धि, गति, बिंब की ऊँचाई आदि का वर्णन |
| जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति |
325000 |
|
जंबूद्वीपस्थ भोगभूमि और कर्मभूमि में उत्पन्न हुए नाना प्रकार के मनुष्य तथा दूसरे तिर्यंच आदि का पर्वत, द्रह, नदी आदि का वर्णन |
| द्वीपसागरप्रज्ञप्ति |
5236000 |
|
द्वीप और समुद्रों के प्रमाण का तथा द्वीपसागर के अंतर्भूत नानाप्रकार के दूसरे पदार्थों का वर्णन |
| व्याख्याप्रज्ञप्ति |
8436000 |
|
पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल भव्यसिद्ध और अभव्यसिद्ध जीव, इन सबका वर्णन |
| सूत्र |
8800000 |
|
जीव अबंधक ही है, अवलेपक ही है, अकर्ता ही है, अभोक्ता ही है, इत्यादि रूप से 363 मतों का पूर्वपक्ष रूप से वर्णन |
| प्रथमानुयोग |
5000 |
|
पुराणों का वर्णन |
| पूर्वगत |
उत्पाद पूर्व |
10000000 |
10 |
जीव पुद्गलादि का जहाँ जब जैसा उत्पाद होता है उस सबका वर्णन |
| अग्रायणीय पूर्व |
9600000 |
14 |
क्रियावाद आदि की प्रक्रिया और स्वसमय का विषय । (दूसरे अग्रायणीय पूर्व के चयनलब्धि नामक अधिकार के चतुर्थ पाहुड कर्मप्रकृति आदि से षट्खण्डागम की रचना की गई ।) |
| वीर्यानुवाद पूर्व |
7000000 |
8 |
छद्मस्थ और केवली की शक्ति सुरेंद्र असुरेंद्र आदि की ऋद्धियाँ नरेंद्र चक्रवर्ती बलदेव आदि की सामर्थ्य द्रव्यों के लक्षण आदि का निरूपण |
| अस्तिनास्तिप्रवाद |
6000000 |
18 |
पाँचों अस्तिकायों का और नयों का अस्ति-नास्ति आदि अनेक पर्यायों द्वारा विवेचन |
| ज्ञानप्रवाद |
9999999 |
12 |
पाँचों ज्ञानों और इंद्रियों का विभाग आदि निरूपण । (ज्ञानप्रवाद नामक पांचवे पूर्व की दसवीं वस्तु में तीसरा पेज्जप्राभृत है उससे कषायप्राभृत की उत्पत्ति हुई है) |
| सत्यप्रवाद |
10000006 |
12 |
वाग्गुप्ति, वचन संस्कार के कारण, वचन प्रयोग बारह प्रकार की भाषाएँ, दस प्रकार के सत्य, वक्ता के प्रकार आदि का विस्तार विवेचन |
| आत्मप्रवाद |
260000000 |
16 |
आत्म द्रव्य का और छह जीव निकायों का अस्ति-नास्ति आदि विविध भंगों से निरूपण |
| कर्मप्रवाद |
18000000 |
20 |
कर्मों की बंध उदय उपशम आदि दशाओं का और स्थिति आदि का वर्णन |
| प्रत्याख्यानप्रवाद |
8400000 |
30 |
व्रत-नियम, प्रतिक्रमण, तप, आराधना आदि तथा मुनित्व में कारण द्रव्यों के त्याग आदि का विवेचन |
| विद्यानुवाद |
11000000 |
15 |
समस्त विद्याएँ आठ महानिमित्त, रज्जुराशिविधि, क्षेत्र, श्रेणी, लोक प्रतिष्ठा, समुद्घात आदि का विवेचन |
| कल्याणवाद |
260000000 |
10 |
सूर्य, चंद्रमा, ग्रह, नक्षत्र और तारागणों के चार क्षेत्र, उपपादस्थान, गति, वक्रगति तथा उनके फलों का, पक्षी के शब्दों का और अरिहंत अर्थात् तीर्थंकर, बलदेव, वासुदेव और चक्रवर्ती आदि के गर्भावतार आदि महाकल्याणकों का वर्णन |
| प्राणावाद |
130000000 |
10 |
शरीर चिकित्सा आदि अष्टांग आयुर्वेद, भूतिकर्म, जांगुलिकक्रम (विषविद्या) और प्राणायाम के भेद-प्रभेदों का विस्तार से वर्णन |
| क्रियाविशाल |
90000000 |
10 |
लेखन कला आदि बहत्तर कलाओं का, स्त्री संबंधी चौंसठ गुणों का, शिल्पकला का, काव्य संबंधी गुण-दोष विधि का और छंद निर्माण कला का विवेचन |
| त्रिलोकबिंदुसार |
125000000 |
10 |
आठ व्यवहार, चार बीज, राशि परिकर्म आदि गणित तथा समस्त श्रुतसंपत्ति का वर्णन |
| चूलिका |
जलगता |
20979205 |
|
जल में गमन, जलस्तंभन के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपश्चर्या रूप अतिशय आदि का वर्णन |
| स्थलगता |
20979205 |
|
पृथिवी के भीतर गमन करने के कारणभूत मंत्र तंत्र और तपश्चरणरूप आश्चर्य आदि का तथा वास्तु विद्या और भूमि संबंधी दूसरे शुभ-अशुभ कारणों का वर्णन |
| आकाशगता |
20979205 |
|
इंद्रजाल आदि के कारणभूत मंत्र और तपश्चरण का वर्णन |
| रूपगता |
20979205 |
|
सिंह, घोड़ा और हरिण आदि के स्वरूप के आकार रूप से परिणमन करने के कारणभूत मंत्र-तंत्र और तपश्चरण तथा चित्र-काष्ठ- लेप्य-लेन कर्म आदि के लक्षण का वर्णन |
| मायागता |
20979205 |
|
आकाश में गमन करने के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपश्चरण का वर्णन |
|
कुल पद |
112835805 |
|
| अंग-बाह्य |
1 |
सामायिक |
समता भाव के विधान का वर्णन |
| 2 |
चतुर्विंशतिस्तव |
चौबीस तीर्थंकरों की वंदना करने की विधि, उनके नाम, संस्थान, उत्सेध, पाँच महाकल्याणक, चौंतीस अतिशयों के स्वरूप और तीर्थंकरों की वंदना की सफलता का वर्णन |
| 3 |
वंदना |
एक जिनेंद्र देव संबंधी और उन एक जिनेंद्र देव के अवलंबन से जिनालय संबंधी वंदना का वर्णन |
| 4 |
प्रतिक्रमण |
सात प्रकार के प्रतिक्रमणों का वर्णन |
| 5 |
वैनयिक |
पाँच प्रकार की विनयों का वर्णन |
| 6 |
कृतिकर्म |
अरहंत, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय और साधु की पूजाविधि का वर्णन |
| 7 |
दशवैकालिक |
दश वैकालिकों का वर्णन तथा मुनियों की आचार विधि और गोचरविधि का भी वर्णन |
| 8 |
उत्तराध्ययन |
अनेक प्रकार के उत्तर |
| 9 |
कल्पव्यवहार |
साधुओं के योग्य आचरण का और अयोग्य आचरण के होने पर प्रायश्चित्त विधि का वर्णन |
| 10 |
कल्प्याकल्प्य |
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा मुनियों के लिए यह योग्य है और यह अयोग्य है' इस तरह इन सबका वर्णन |
| 11 |
महाकल्प्य |
काल और संहनन का आश्रय कर साधु के योग्य द्रव्य और क्षेत्रादि का वर्णन |
| 12 |
पुंडरीक |
भवनवासी आदि चार प्रकार के देवों में उत्पत्ति के कारण रूप, दान, पूजा, तपश्चरण आदि अनुष्ठानों का वर्णन |
| 13 |
महापुंडरीक |
समस्त इंद्र और प्रतींद्रों में उत्पत्ति के कारणरूप तपों विशेष आदि आचरण का वर्णन |
| 14 |
निषिद्धका |
बहुत प्रकार के प्रायश्चित्त के प्रतिपादन |
|
कुल अक्षर |
80108175 |
|