+ द्वादशाङ्ग निर्देश -
द्वादशाङ्ग निर्देश

  विशेष 

विशेष :


श्रुत-ज्ञान निर्देश
श्रुत क्रम नाम पद संख्या वस्तु संख्या विषय
अंग-प्रविष्ट 1 आचारांग 18000 चर्या का विधान आठ शुद्धि, पाँच समिति, तीन गुप्ति आदि रूप से वर्णित
2 सूत्रकृतांग 36000 ज्ञान-विनय, क्या कल्प्य है क्या अकल्प्य है, छेदोपस्थापनादि, व्यवहारधर्म की क्रियाओं का निरूपण
3 स्थानांग 42000 एक-एक दो-दो आदि के रूप से अर्थों का वर्णन
4 समवायांग 164000 सब पदार्थों की समानता रूप से समवाय का विचार
5 व्याख्या प्रज्ञप्ति(श्वे.भगवतीसूत्र) 22800084000 'जीव है कि नहीं' आदि साठ हज़ार प्रश्नों के उत्तर
6 ज्ञातृधर्मकथा 556000 अनेक आख्यान और उपाख्यानों का निरूपण
7 उपासकाध्ययन 1170000 श्रावकधर्म का विशेष विवेचन
8 अंतकृद्दशांग 2328000 प्रत्येक तीर्थंकर के समय में होने वाले उन दश-दश अंतकृत केवलियों का वर्णन है जिनने भयंकर उपसर्गों को सहकर मुक्ति प्राप्त की
9 अनुत्तरोपपादिकदशांग 9244000 प्रत्येक तीर्थंकर के समय में होने वाले उन दश-दश मुनियों का वर्णन है जिनने दारुण उपसर्गों को सहकर ...पाँच अनुत्तर विमानों में जन्म लिया
10 प्रश्न व्याकरण 9316000 युक्ति और नयों के द्वारा अनेक आक्षेप और विक्षेप रूप प्रश्नों का उत्तर
11 विपाक सूत्र 18400000 पुण्य और पाप के विपाक का विचार
12 दृष्टिवाद परिकर्म चंद्रप्रज्ञप्ति 3605000 चंद्रमा की आयु, परिवार, ऋद्धि, गति और बिंब की ऊँचाई आदि का वर्णन
सूर्यप्रज्ञप्ति 303000 सूर्य की आयु, भोग, उपभोग, परिवार, ऋद्धि, गति, बिंब की ऊँचाई आदि का वर्णन
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति 325000 जंबूद्वीपस्थ भोगभूमि और कर्मभूमि में उत्पन्न हुए नाना प्रकार के मनुष्य तथा दूसरे तिर्यंच आदि का पर्वत, द्रह, नदी आदि का वर्णन
द्वीपसागरप्रज्ञप्ति 5236000 द्वीप और समुद्रों के प्रमाण का तथा द्वीपसागर के अंतर्भूत नानाप्रकार के दूसरे पदार्थों का वर्णन
व्याख्याप्रज्ञप्ति 8436000 पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल भव्यसिद्ध और अभव्यसिद्ध जीव, इन सबका वर्णन
सूत्र 8800000 जीव अबंधक ही है, अवलेपक ही है, अकर्ता ही है, अभोक्ता ही है, इत्यादि रूप से 363 मतों का पूर्वपक्ष रूप से वर्णन
प्रथमानुयोग 5000 पुराणों का वर्णन
पूर्वगत उत्पाद पूर्व 10000000 10 जीव पुद्गलादि का जहाँ जब जैसा उत्पाद होता है उस सबका वर्णन
अग्रायणीय पूर्व 9600000 14 क्रियावाद आदि की प्रक्रिया और स्वसमय का विषय । (दूसरे अग्रायणीय पूर्व के चयनलब्धि नामक अधिकार के चतुर्थ पाहुड कर्मप्रकृति आदि से षट्खण्डागम की रचना की गई ।)
वीर्यानुवाद पूर्व 7000000 8 छद्मस्थ और केवली की शक्ति सुरेंद्र असुरेंद्र आदि की ऋद्धियाँ नरेंद्र चक्रवर्ती बलदेव आदि की सामर्थ्य द्रव्यों के लक्षण आदि का निरूपण
अस्तिनास्तिप्रवाद 6000000 18 पाँचों अस्तिकायों का और नयों का अस्ति-नास्ति आदि अनेक पर्यायों द्वारा विवेचन
ज्ञानप्रवाद 9999999 12 पाँचों ज्ञानों और इंद्रियों का विभाग आदि निरूपण । (ज्ञानप्रवाद नामक पांचवे पूर्व की दसवीं वस्तु में तीसरा पेज्जप्राभृत है उससे कषायप्राभृत की उत्पत्ति हुई है)
सत्यप्रवाद 10000006 12 वाग्गुप्ति, वचन संस्कार के कारण, वचन प्रयोग बारह प्रकार की भाषाएँ, दस प्रकार के सत्य, वक्ता के प्रकार आदि का विस्तार विवेचन
आत्मप्रवाद 260000000 16 आत्म द्रव्य का और छह जीव निकायों का अस्ति-नास्ति आदि विविध भंगों से निरूपण
कर्मप्रवाद 18000000 20 कर्मों की बंध उदय उपशम आदि दशाओं का और स्थिति आदि का वर्णन
प्रत्याख्यानप्रवाद 8400000 30 व्रत-नियम, प्रतिक्रमण, तप, आराधना आदि तथा मुनित्व में कारण द्रव्यों के त्याग आदि का विवेचन
विद्यानुवाद 11000000 15 समस्त विद्याएँ आठ महानिमित्त, रज्जुराशिविधि, क्षेत्र, श्रेणी, लोक प्रतिष्ठा, समुद्घात आदि का विवेचन
कल्याणवाद 260000000 10 सूर्य, चंद्रमा, ग्रह, नक्षत्र और तारागणों के चार क्षेत्र, उपपादस्थान, गति, वक्रगति तथा उनके फलों का, पक्षी के शब्दों का और अरिहंत अर्थात् तीर्थंकर, बलदेव, वासुदेव और चक्रवर्ती आदि के गर्भावतार आदि महाकल्याणकों का वर्णन
प्राणावाद 130000000 10 शरीर चिकित्सा आदि अष्टांग आयुर्वेद, भूतिकर्म, जांगुलिकक्रम (विषविद्या) और प्राणायाम के भेद-प्रभेदों का विस्तार से वर्णन
क्रियाविशाल 90000000 10 लेखन कला आदि बहत्तर कलाओं का, स्त्री संबंधी चौंसठ गुणों का, शिल्पकला का, काव्य संबंधी गुण-दोष विधि का और छंद निर्माण कला का विवेचन
त्रिलोकबिंदुसार 125000000 10 आठ व्यवहार, चार बीज, राशि परिकर्म आदि गणित तथा समस्त श्रुतसंपत्ति का वर्णन
चूलिका जलगता 20979205 जल में गमन, जलस्तंभन के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपश्चर्या रूप अतिशय आदि का वर्णन
स्थलगता 20979205 पृथिवी के भीतर गमन करने के कारणभूत मंत्र तंत्र और तपश्चरणरूप आश्चर्य आदि का तथा वास्तु विद्या और भूमि संबंधी दूसरे शुभ-अशुभ कारणों का वर्णन
आकाशगता 20979205 इंद्रजाल आदि के कारणभूत मंत्र और तपश्चरण का वर्णन
रूपगता 20979205 सिंह, घोड़ा और हरिण आदि के स्वरूप के आकार रूप से परिणमन करने के कारणभूत मंत्र-तंत्र और तपश्चरण तथा चित्र-काष्ठ- लेप्य-लेन कर्म आदि के लक्षण का वर्णन
मायागता 20979205 आकाश में गमन करने के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपश्चरण का वर्णन
कुल पद 112835805
अंग-बाह्य 1 सामायिक समता भाव के विधान का वर्णन
2 चतुर्विंशतिस्तव चौबीस तीर्थंकरों की वंदना करने की विधि, उनके नाम, संस्थान, उत्सेध, पाँच महाकल्याणक, चौंतीस अतिशयों के स्वरूप और तीर्थंकरों की वंदना की सफलता का वर्णन
3 वंदना एक जिनेंद्र देव संबंधी और उन एक जिनेंद्र देव के अवलंबन से जिनालय संबंधी वंदना का वर्णन
4 प्रतिक्रमण सात प्रकार के प्रतिक्रमणों का वर्णन
5 वैनयिक पाँच प्रकार की विनयों का वर्णन
6 कृतिकर्म अरहंत, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय और साधु की पूजाविधि का वर्णन
7 दशवैकालिक दश वैकालिकों का वर्णन तथा मुनियों की आचार विधि और गोचरविधि का भी वर्णन
8 उत्तराध्ययन अनेक प्रकार के उत्तर
9 कल्पव्यवहार साधुओं के योग्य आचरण का और अयोग्य आचरण के होने पर प्रायश्चित्त विधि का वर्णन
10 कल्प्याकल्प्य द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा मुनियों के लिए यह योग्य है और यह अयोग्य है' इस तरह इन सबका वर्णन
11 महाकल्प्य काल और संहनन का आश्रय कर साधु के योग्य द्रव्य और क्षेत्रादि का वर्णन
12 पुंडरीक भवनवासी आदि चार प्रकार के देवों में उत्पत्ति के कारण रूप, दान, पूजा, तपश्चरण आदि अनुष्ठानों का वर्णन
13 महापुंडरीक समस्त इंद्र और प्रतींद्रों में उत्पत्ति के कारणरूप तपों विशेष आदि आचरण का वर्णन
14 निषिद्धका बहुत प्रकार के प्रायश्चित्त के प्रतिपादन
कुल अक्षर 80108175


कुल 64 अक्षर
    27 स्वर
    • 9 स्वर = अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ऐ, ओ, औ
    • प्रत्येक हृस्व, दीर्घ और प्लुत के भेद से 27 प्रकार
  • 33 व्यंजन =
    • 25 = क, च, ट, त, प वर्ग क
    • 8 = य, र, ल, व, श, ष, स, ह
  • 4 योगवाह = अं (अनुस्वार), अँ (अनुनासिक), अः (विसर्ग) आदि


पद
  • अर्थपद : आचार्य विवक्षित अर्थ का कथन करने के लिये जितने शब्द उच्चारण करते हैं उनके समूह का नाम अर्थपद है
  • प्रमाणपद : आठ अक्षरों का एक प्रमाणपद समझना चाहिये; और
  • मध्यमपद : इसमें सोलह सौ चौतीस करोड़ तिरासी लाख सात हजार आठ सौ अठासी (1634,83,07,888) अक्षर होते हैं ।
इस प्रकार पद तीन प्रकार का कहा गया है। उनमें से मध्यमपद के द्वारा पूर्व और अङ्गों के पदों के विभाग का कथन किया है

कुल अक्षर = 2^64 - 1 = 184466744073709551615

सकल श्रुतज्ञान = 112,83,58,005 मध्यम पद ।