विशेष :
कर्म की १४८ प्रकृतियाँ |
कर्म |
कुल |
भेद |
संख्या |
प्रकृति |
ज्ञानावरणी |
5 |
सर्वघाति |
1 |
केवलज्ञानावरण |
देशघाति |
4 |
मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मन:पर्ययज्ञानावरण |
दर्शनावरणी |
9 |
सर्वघाति |
6 |
केवलदर्शनावरण, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि |
देशघाति |
3 |
चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण |
वेदनीय |
2 |
सातावेदनीय और असातावेदनीय |
मोहनीय |
दर्शन |
3 |
सर्वघाति |
2 |
मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व |
देशघाति |
1 |
सम्यक्त्वप्रकृति |
चारित्र |
25 |
सर्वघाति |
12 |
अनंतानुबंधी-4, अप्रत्याख्यानावरण-4, प्रत्याख्यानावरण-4 [क्रोध, मान, माया, लोभ] |
देशघाति |
13 |
संज्वलन-4 (क्रोध, मान, माया लोभ), हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद और नपुंसकवेद |
आयु |
4 |
नरकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु और देवायु |
नाम |
93 |
पिंड-प्रकृति |
14 (65) |
४ गति -- नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव५ जाति -- एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय१५ शरीर / बंधन / संघात -- औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण६ संस्थान -- समचतुरस्र, न्यग्रोधपरिमंडल, स्वाति, कुब्जक, वामन और हुंडक३ अंगोपांग -- औदारिक, वैक्रियिक और आहारक६ संहनन -- वज्रऋषभनाराच, वज्रनाराच, नाराच, अर्धनाराच, कीलक, असंप्राप्तसृपाटिका८ स्पर्श -- कोमल, कठोर, गुरू, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष५ रस -- तिक्त (चरपरा), कटुक, (कडुवा), कषाय (कषायला), आम्ल (खट्टा) और मधुर (मीठा)२ गंध -- सुगंध और दुर्गन्ध५ वर्ण -- नील, शुक्ल, कृष्ण, रक्त और पीत४ आनुपूर्वी -- नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और देवगत्यानुपूर्वी२ विहायोगति -- प्रशस्त और अप्रशस्त |
प्रत्येक-प्रकृति |
8 |
उपघात, परघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास, अगुरुलघु, तीर्थंकर, निर्माण |
त्रस-दशक |
10 |
त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक शरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशस्कीर्ति |
स्थावर-दशक |
10 |
स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और अयशकीर्ति |
गोत्र |
2 |
उच्च और नीच |
अन्तराय |
5 |
दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य |
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