+ पुण्य का वर्णन -
(दोहरा)
जो विशुद्धभावनि बंधै, अरु ऊरधमुख होइ ।
जो सुखदायक जगतमैं, पुन्य पदारथ सोइ ॥२८॥
अन्वयार्थ : (दोहरा)
जो विशुद्धभावनि बंधै, अरु ऊरधमुख होइ ।
जो सुखदायक जगतमैं, पुन्य पदारथ सोइ ॥२८॥