
अमृतचंद्राचार्य : संस्कृत
अथ पुद्गलद्रव्यास्तिकायव्याख्यानम् । पुद्गलद्रव्यविकल्पादेशोऽयम् । पुद्गलद्रव्याणि हि कदाचित्स्कन्धपर्यायेण, कदाचित्स्कन्धदेशपर्यायेण, कदाचित्स्कन्ध-प्रदेशपर्यायेण, कदाचित्परमाणुत्वेनात्र तिष्ठन्ति । नान्या गतिरस्ति । इति तेषां चतुर्विकल्पत्वमिति ॥७३॥ यह, पुद्गल-द्रव्य के भेदों का कथन है । पुद्गल-द्रव्य कथंचित स्कन्ध-पर्याय से, कदाचित् स्कन्ध-देश-रूप पर्याय से, कदाचित् स्कन्ध-प्रदेश-रूप पर्याय से और कदाचित् परमाणु-रूप से यहाँ (लोक में) होते हैं; अन्य कोई गति नहीं है । इस प्रकार उनके चार भेद हैं ॥७४॥ |
जयसेनाचार्य :
[खंदा य खंददेसा खंदपदेसा य होंति] स्कंध, स्कंध-देश और स्कंध-प्रदेश -- ये तीन स्कन्ध होते हैं; [परमाणु] और परमाणु हैं [इदि ते चदुव्वियप्पा पोग्गलकाया मुणेदव्वा] इसप्रकार तीन स्कन्ध और परमाणु के भेद से पुद्गल-काय चार भेद वाले हैं, ऐसा जानना चाहिए । यहाँ उपादेय-भूत अनंत-सुख-रूप शुद्ध जीवास्तिकाय से विलक्षण होने के कारण यह हेय तत्त्व है, ऐसा भावार्थ है ॥८०॥ |