
अमृतचंद्राचार्य : संस्कृत
पुण्यपापस्वरूपाख्यानमेतत् । जीवस्य कर्तुः निश्चयकर्मतामापन्नः शुभपरिणामो द्रव्यपुण्यस्य निमित्तमात्रत्वेनकारणीभूतत्वात्तदास्रवक्षणादूर्ध्वं भवति भावपुण्यम् । एवं जीवस्य कर्तुर्निश्चयकर्मता-मापन्नोऽशुभपरिणामो द्रव्यपापस्य निमित्तमात्रत्वेन कारणीभूतत्वात्तदास्रवक्षणादूर्ध्वंभावपापम् । पुद्गलस्य कर्तुर्निश्चयकर्मतामापन्नो विशिष्टप्रकृतित्वपरिणामो जीवशुभ-परिणामनिमित्तो द्रव्यपुण्यम् । पुद्गलस्य कर्तुर्निश्चयकर्मतामापन्नो विशिष्टप्रकृतित्वपरिणामोजीवाशुभपरिणामनिमित्तो द्रव्यपापम् । एवं व्यवहारनिश्चयाभ्यामात्मनो मूर्तममूर्तञ्च कर्मप्रज्ञापितमिति ॥१३०॥ यह, पुण्य-पाप के स्वरूप का कथन है ।
इस प्रकार व्यवहार तथा निश्चय द्वारा आत्मा को मूर्त तथा अमूर्त कर्म दर्शाया गया ॥१३०॥ १जीव कर्ता है और शुभ परिणाम उसका (अशुद्ध-निश्चय-नय से) निश्चय कर्म है। २पुद्गल कर्ता है और विशिष्ट-प्रकृति-रूप परिणाम उसका निश्चय-कर्म है (अर्थात निश्चय से पुद्गल-कर्ता है और साता-वेदनीयादि विशिष्ट प्रकृति-रूप परिणाम उसका कर्म है )। |
जयसेनाचार्य :
[सुहपरिणामो पुण्णं असुहो पावत्ति होदि] शुभ परिणाम पुण्य, अशुभ पाप-ऐसा है । इस रूप किसका परिणाम है ? [जीवस्स] जीव का परिणाम है । [दोण्हं] दोनों से, जीव के पूर्वोक्त शुभाशुभ परिणामों के निमित्त से [भावो] भाव, ज्ञानावरणादि पर्याय है । वे किस विशेषता-वाली हैं ? [पोग्गलमेत्तो] वे पुद्गल-मात्र, कर्म-वर्गणा के योग्य पुद्गल पिण्ड-रूप हैं । [कम्मत्तणं पुत्तो] वे कर्मत्व, द्रव्य-कर्म पर्याय को प्राप्त हैं । वह इसप्रकार -- यद्यपि शुद्ध निश्चय से शुभाशुभ परिणाम उपादान कारण-भूत जीव से उत्पन्न हैं; तथापि अनुपचरित असद्भूत व्यवहार से क्योंकि नवीन द्रव्य पुण्य-पाप दोनों के कारणभूत हैं, उस कारण भाव पुण्य-पाप पदार्थ कहे गए हैं । तथा साता-वेदनीय, असाता-वेदनीय आदि द्रव्य प्रकृति-रूप पुद्गल पिण्ड यद्यपि निश्चय से कर्म-वर्गणा योग्य / पुद्गल पिण्ड से उत्पन्न हैं; तथापि अनुपचरित असद्भूत व्यवहार से जीव-रूप शुभाशुभ परिणाम से उत्पन्न हैं; अत: द्रव्य पुण्य-पाप पदार्थ कहे गए हैं, ऐसा सूत्रार्थ है ॥१४०॥ इसप्रकार शुद्ध-बुद्ध एक-स्वभावी शुद्धात्मा से भिन्न, हेय-रूप द्रव्य-भाव पुण्य-पाप दोनों के व्याख्यान रूप एक गाथा द्वारा दूसरा स्थल पूर्ण हुआ । |