ब्रह्मदेव सूरि : संस्कृत
[ववहारा सुहदुक्खं पुग्गलकम्मफलं पभुजेदि] व्यवहार नय की अपेक्षा से सुख-दुःख रूप पुद्गल कर्म फलों को भोगता है । वह कर्म फलों का भोक्ता कौन है? [आदा] आत्मा । [णिच्छयणयदो चेदणभावं खु आदस्स] और निश्चय-नय से तो स्पष्ट-रीति से चेतन-भाव का ही भोक्ता आत्मा है । वह चेतन-भाव किस सम्बन्धी है? आत्मा का अपना ही है । वह ऐसे -
आत्मा यद्यपि निश्चयनय से लोकाकाश के बराबर असंख्यात प्रदेशों का धारक है फिर भी व्यवहारनय से अपनी देह के बराबर है - यह बतलाते हैं -- [ववहारा सुहदुक्खं पुग्गलकम्मफलं पभुजेदि] व्यवहार नय की अपेक्षा से सुख-दुःख रूप पुद्गल कर्म फलों को भोगता है । वह कर्म फलों का भोक्ता कौन है? [आदा] आत्मा । [णिच्छयणयदो चेदणभावं खु आदस्स] और निश्चय-नय से तो स्पष्ट-रीति से चेतन-भाव का ही भोक्ता आत्मा है । वह चेतन-भाव किस सम्बन्धी है? आत्मा का अपना ही है । वह ऐसे -
आत्मा यद्यपि निश्चयनय से लोकाकाश के बराबर असंख्यात प्रदेशों का धारक है फिर भी व्यवहारनय से अपनी देह के बराबर है - यह बतलाते हैं -- |
आर्यिका ज्ञानमती :
प्रश्न – आत्मा सुख-दु:ख का भोगने वाला किस अपेक्षा से है? उत्तर – व्यवहारनय की अपेक्षा से। प्रश्न – शुद्ध ज्ञान और शुद्ध दर्शन कौन से हैं? उत्तर – केवलज्ञान और केवलदर्शन शुद्ध ज्ञान-दर्शन हैं। इन्हें केवलज्ञान-केवलदर्शन अथवा क्षायिकज्ञान-क्षायिकदर्शन भी कहते हैं। प्रश्न – शुद्ध ज्ञान-दर्शन किस जीव के पाये जाते हैं? उत्तर – अरहंत-केवली भगवान व सिद्धों में शुद्ध ज्ञान-दर्शन पाया जाता है। प्रश्न – आत्मा शुद्ध ज्ञान-दर्शन का भोगने वाला किस नय की अपेक्षा से है? उत्तर –निश्चयनय की अपेक्षा से। प्रश्न – भोक्ता किसे कहते हैं ? उत्तर – वस्तुओं को भोगने वाला, अनुभव करने वाला भोक्ता कहलाता है। प्रश्न – सुख किसको कहते हैं ? उत्तर – साता कर्म के उदय से उत्पन्न आल्हादरूप परिणाम को सुख कहते हैं। प्रश्न – दु:ख किसको कहते हैं ? उत्तर – असाता कर्म के उदय से उत्पन्न खेदरूप परिणाम को दु:ख कहते हैं। विशेष-यह आत्मा निज शुद्ध आत्मीय ज्ञान से उत्पन्न परमार्थिक सुखामृतपान से शून्य हो उपचरित असद्भूत व्यवहारनय से पंचेन्द्रियजन्य इष्ट-अनिष्ट विषयों से उत्पन्न सुख-दु:ख का भोक्ता है। अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय से साता-असातारूप कर्म फल का भोक्ता है। अशुद्ध निश्चयनय से हर्ष-विषादरूप सुख-दु:ख परिणामों को भोक्ता है। शुद्ध निश्चयनय से निश्चयरत्नत्रय से उत्पन्न अविनाशी आनन्दामृत का भोक्ता है। |