+ पुद्गल का परमाणु अस्तिकाय है -
एयपदेसो वि अणू, णाणाखंधप्पदेसदो होदि
बहुदेसो उवयारा, तेण य काओ भणंति सव्वण्हू ॥26॥
यद्यपि पुद्गल अणु है मात्र एक प्रदेशमय ।
पर बहुप्रदेशी कहें जिन स्कन्ध के उपचार से ॥२६॥
अन्वयार्थ : [एयपदेसो वि अणू] एक प्रदेश वाला भी पुद्गलरूप अणु [णाणा-खंधप्पदेसदो] अनेक स्कन्धरूप प्रदेशों का कारण होने से [बहुदेसो] बहुप्रदेशी [होदि] होता है [य] और [तेण] इसी कारण से [सव्वण्हू] सर्वज्ञदेव परमाणु को [उवयारा काओ] उपचार/व्यवहार से कायवान/बहुप्रदेशी [भणंति] कहते हैं ।
Meaning : An infinitesimal particle (paramanu) of matter (pudgala) has one space-point only, but since it transforms into molecules it is said to be having multiple space-points. Therefore, Lord Jina has empirically called the particle of matter 'kāya'.

  ब्रह्मदेव सूरि    आर्यिका ज्ञानमती 

ब्रह्मदेव सूरि : संस्कृत
[एयपदेसो वि अणू णाणाखंधप्पदेसदो होदि बहुदेसो] यद्यपि पुद्गल परमाणु एकप्रदेशी है तथापि अनेक प्रकार के द्विअणुक आदि स्कन्ध रूप बहुत प्रदेशों के कारण बहुप्रदेशी होता है । [उवयारा] उपचार से अथवा व्यवहारनय से । [तेण य काओ भणंति सव्वण्हु] इसी कारण सर्वज्ञदेव उस पुद्गल परमाणु को काय कहते हैं । जैसे यह परमात्मा शुद्ध निश्चयनय की अपेक्षा द्रव्य रूप से शुद्ध तथा एक है तो भी अनादि कर्मबन्धन के कारण स्निग्ध तथा रूक्ष गुणों के स्थानीय (की जगह) राग, द्वेष रूप परिणमन करके व्यवहारनय के द्वारा मनुष्य, नारक आदि विभाव पर्याय रूप अनेक प्रकार का होता है, उसी प्रकार पुद्गल परमाणु भी यद्यपि स्वभाव से एक और शुद्ध है तो भी रागद्वेष के स्थानभूत जो बन्ध के योग्य स्निग्ध, रूक्ष गुणों के द्वारा परिणमन करके द्वि-अणुक आदि स्कन्ध रूप जो विभाव पर्याय हैं, उनके द्वारा अनेक प्रकार का बहुत प्रदेशों वाला हो जाता है । इसीलिए बहुप्रदेशता रूप कायत्व का कारण होने से पुद्गल परमाणु को सर्वज्ञ भगवान् व्यवहार से काय कहते हैं ।
यदि कोई ऐसा कहे कि जैसे द्रव्य रूप से एक भी पुद्गल परमाणु के द्वि-अणुक आदि स्कन्ध पर्याय द्वारा बहु-प्रदेश रूप कायत्व सिद्ध हुआ है; ऐसे ही द्रव्य रूप से एक होने पर भी कालाणु के पर्याय द्वारा कायत्व सिद्ध होता है । इसका परिहार करते हैं कि स्निग्ध रूक्ष गुण के कारण होने वाले बन्ध का कालद्रव्य में अभाव है इसलिए वह काय नहीं हो सकता । ऐसा भी क्यों? क्योंकि स्निग्ध तथा रूक्षपना पुद्गल का ही धर्म है । काल में स्निग्ध रूक्ष नहीं है और उनके बिना बन्ध नहीं होता ।
कदाचित् यह पूछो कि 'अणु' यह तो पुद्गल की संज्ञा है, काल की 'अणु' संज्ञा कैसे हुई? इसका उत्तर यह है कि 'अणु' इस शब्द द्वारा व्यवहारनय से पुद्गल कहे जाते हैं और निश्चयनय से तो वर्ण आदि गुणों के पूरण तथा गलन के सम्बन्ध से वे पुद्गल कहे जाते हैं; वास्तव में अणु' शब्द सूक्ष्म का वाचक है, जैसे परम अर्थात् अत्यन्त रूप से जो अणु हो सो 'परमाणु' है । अणु का क्या अर्थ है? 'सूक्ष्म' इस व्युत्पत्ति से परमाणु शब्द 'अतिसूक्ष्म' पदार्थ को कहता है और वह सूक्ष्म-वाचक अणु शब्द निर्विभाग पुद्गल की विवक्षा [कहने की इच्छा] में पुद्गलाणु को कहता है और अविभागी कालद्रव्य के कहने की जब इच्छा होती है तब 'कालाणु' को कहता है ॥२६॥
अब प्रदेश का लक्षण कहते हैं --


[एयपदेसो वि अणू णाणाखंधप्पदेसदो होदि बहुदेसो] यद्यपि पुद्गल परमाणु एकप्रदेशी है तथापि अनेक प्रकार के द्विअणुक आदि स्कन्ध रूप बहुत प्रदेशों के कारण बहुप्रदेशी होता है । [उवयारा] उपचार से अथवा व्यवहारनय से । [तेण य काओ भणंति सव्वण्हु] इसी कारण सर्वज्ञदेव उस पुद्गल परमाणु को काय कहते हैं । जैसे यह परमात्मा शुद्ध निश्चयनय की अपेक्षा द्रव्य रूप से शुद्ध तथा एक है तो भी अनादि कर्मबन्धन के कारण स्निग्ध तथा रूक्ष गुणों के स्थानीय (की जगह) राग, द्वेष रूप परिणमन करके व्यवहारनय के द्वारा मनुष्य, नारक आदि विभाव पर्याय रूप अनेक प्रकार का होता है, उसी प्रकार पुद्गल परमाणु भी यद्यपि स्वभाव से एक और शुद्ध है तो भी रागद्वेष के स्थानभूत जो बन्ध के योग्य स्निग्ध, रूक्ष गुणों के द्वारा परिणमन करके द्वि-अणुक आदि स्कन्ध रूप जो विभाव पर्याय हैं, उनके द्वारा अनेक प्रकार का बहुत प्रदेशों वाला हो जाता है । इसीलिए बहुप्रदेशता रूप कायत्व का कारण होने से पुद्गल परमाणु को सर्वज्ञ भगवान् व्यवहार से काय कहते हैं ।

यदि कोई ऐसा कहे कि जैसे द्रव्य रूप से एक भी पुद्गल परमाणु के द्वि-अणुक आदि स्कन्ध पर्याय द्वारा बहु-प्रदेश रूप कायत्व सिद्ध हुआ है; ऐसे ही द्रव्य रूप से एक होने पर भी कालाणु के पर्याय द्वारा कायत्व सिद्ध होता है । इसका परिहार करते हैं कि स्निग्ध रूक्ष गुण के कारण होने वाले बन्ध का कालद्रव्य में अभाव है इसलिए वह काय नहीं हो सकता । ऐसा भी क्यों? क्योंकि स्निग्ध तथा रूक्षपना पुद्गल का ही धर्म है । काल में स्निग्ध रूक्ष नहीं है और उनके बिना बन्ध नहीं होता ।

कदाचित् यह पूछो कि 'अणु' यह तो पुद्गल की संज्ञा है, काल की 'अणु' संज्ञा कैसे हुई? इसका उत्तर यह है कि 'अणु' इस शब्द द्वारा व्यवहारनय से पुद्गल कहे जाते हैं और निश्चयनय से तो वर्ण आदि गुणों के पूरण तथा गलन के सम्बन्ध से वे पुद्गल कहे जाते हैं; वास्तव में अणु' शब्द सूक्ष्म का वाचक है, जैसे परम अर्थात् अत्यन्त रूप से जो अणु हो सो 'परमाणु' है । अणु का क्या अर्थ है? 'सूक्ष्म' इस व्युत्पत्ति से परमाणु शब्द 'अतिसूक्ष्म' पदार्थ को कहता है और वह सूक्ष्म-वाचक अणु शब्द निर्विभाग पुद्गल की विवक्षा [कहने की इच्छा] में पुद्गलाणु को कहता है और अविभागी कालद्रव्य के कहने की जब इच्छा होती है तब 'कालाणु' को कहता है ॥२६॥

अब प्रदेश का लक्षण कहते हैं --
आर्यिका ज्ञानमती :

यद्यपि परमाणु में एक प्रदेश ही है फिर भी वह स्कं स्कंधने की शक्ति रखता है इसीलिए उस परमाणु को भी उपचार से बहुप्रदेशी मानकर काय कहा है। उस हेतु से वह अस्तिकाय माना गया है। किन्तु कालद्रव्य उपचार से भी बहुप्रदेशी नहीं हो सकता है अत: अस्ति है, काय नहीं है।

प्रश्न – परमाणु किसको कहते हैं?

उत्तर –
जिसका दूसरा टुकड़ा न हो ऐसे अविभागी पुद्गल की अन्तिम अवस्था को परमाणु कहते हैं।

प्रश्न – एक प्रदेशी परमाणु बहु प्रदेशी कैसे कहा जाता है?

उत्तर –
यद्यपि पुद्गल एक प्रदेशी है-तथापि नाना प्रकार के दो अणु आदि स्कंध- रूप बहुत प्रदेशी का कारण होने से पुद्गल को उपचार से बहुप्रदेशी कहा है।

प्रश्न – उपचार किसे कहते हैं?

उत्तर –
किसी वस्तु को किसी निमित्त स्वभाव से भिन्नरूप कहना उपचार कहलाता है। जैसे-शुद्ध पुद्गल परमाणु स्वभाव से एकप्रदेशी है किन्तु अन्य के (पुद्गलों के) संयोग से वह (संख्यात, असंख्यात, अनंत) बहुप्रदेशी कहलाता है।

प्रश्न – जैसे परमाणु का परस्पर बंध होता है, वैसे कालाणु का क्यों नहीं होता ?

उत्तर –
जिस प्रकार पुद्गल परमाणु में परस्पर बंध का कारण स्निग्धत्व- रुक्षत्व है। वैसे-कालाणु में परस्पर बंध का कारण स्निग्ध और रुक्षत्व नहीं है अत: कालाणु में परस्पर बंध नहीं होता।

प्रश्न – परमाणु किसको कहते हैं ?

उत्तर –
जिसका दूसरा टुकड़ा न हो, ऐसे निर्विभाग पुद्गल की अन्तिम अवस्था को परमाणु कहते हैं।



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