प्रभाचन्द्र :
ठूंठ में) पुरुषाग्रह अर्थात् पुरुषाभिनिवेश निवृत्त होने पर - नष्ट होने पर, जिसे (ठूंठ में) पुरुष की भ्रान्ति हुई थी, वह (मनुष्य), जिस प्रकार पुरुषाभिनिवेश जनित उपकार - अपकारादि से प्रवृत्ति का परित्याग करनेरूप चेष्टा करता है, प्रवर्तता है; इसी प्रकार मैंने चेष्टा की है, अर्थात् उस प्रवृत्ति के परित्याग-अनुरूप जिसको जैसी चेष्टा होती है, वैसी चेष्टावाला मैं बन गया हूँ । कहाँ (किस विषय में)? देहादि में । कैसा (हुआ हूँ)? जिसका आत्मविभ्रम विनिवृत्त हुआ है, वैसा; अर्थात् जिसका आत्मविभ्रम विशेषरूप से निवृत्त हुआ है, वैसा हुआ हूँ । कहाँ (किस विषय में) ? देहादि में ॥२२॥ अब, आत्मा में स्त्री आदि लिङ्ग और एकत्वादि संख्या सम्बन्धी विभ्रम की निवृत्ति के लिए उनसे विविक्त (भिन्न) असाधारण स्वरूप बताते हुए कहते हैं :- |