+ अखण्ड स्वरूप -
येनात्मनाऽनुभूयेऽह - मात्मनैवात्मनाऽऽत्मनि
सोऽहं न तन्न सा नासौ नैको न द्वौ न वा बहु: ॥23॥
आत्मा को ही निज गिनूँ नहीं नारी-नर-षण्ड ।
नहीं एक या दो बहुत, मैं हूँ शुद्ध अखण्ड ॥२३॥
अन्वयार्थ : [येन] जिस [आत्मना] आत्मा से-चैतन्य-स्वरूप से [अहम्] मैं [आत्मनि] अपनी आत्मा में ही [आत्मना] आत्मा द्वारा - स्व-संवेदनज्ञान के द्वारा [आत्मनैव] अपनी आत्मा को आप ही [अनुभूये] अनुभव करता हूँ [सः] वही - शुद्धात्म-स्वरूप [अहं] मैं, [न तत्] न तो नपुंसक हूँ [न सा] न स्त्री हूँ [न असौ] न पुरुष हूँ [न एको] न एक हूँ [न द्वौ] न दो हूँ [वा] और [न बहु:] न बहुत हूँ ।
Meaning : I am that pure consciousness which experiences my true self. I am supreme awareness, beyond the pale of gender and numbers.

  प्रभाचन्द्र    वर्णी 

प्रभाचन्द्र :

जो आत्मा द्वारा - चैतन्यस्वरूप द्वारा मैं अनुभव में आता हूँ - किससे ? आत्मा से ही; अन्य किसी से नहीं; किस करण (साधन) द्वारा? आत्मा द्वारा - स्व-संवेदन स्वभाव द्वारा; कहाँ ? आत्मा में - स्व-स्वरूप में, वह मैं हूँ - ऐसा स्वरूपवाला हूँ । न तो मैं नपुंसक हूँ, न स्त्री हूँ, न पुरुष हूँ; तथा न मैं एक हूँ, न दो हूँ अथवा न मैं बहुत हूँ; क्योंकि स्त्रीत्वादि धर्म हैं -- वे तो कर्मोपादित देहस्वरूपवाले हैं ॥२३॥

जिस आत्मा से तुम स्वयं अनुभव में आते हो, वह कैसा है? यह कहते हैं :-