
प्रभाचन्द्र :
मूढात्मा, अर्थात् बहिरात्मा, जहाँ अर्थात् शरीर पुत्र-स्त्री आदि में विश्वास करता है - अवंचक अभिप्राय से (वे मुझे ठगेंगे नहीं - ऐसे अभिप्राय से) विश्वास पाता है - 'वे मेरे हैं और मैं उनका हूँ' - ऐसी अभेदबुद्धि करता है - ऐसा अर्थ है । उनसे दूसरा कोई भय का स्थान नहीं है । उनसे अर्थात् शरीरादि से दूसरा भय का स्थान, अर्थात् संसार दु:ख के त्रास का स्थान नहीं है । जिससे भय पाता है - जिससे अर्थात् परमात्मस्वरूप के संवेदन से भय पाता है - त्रास पाता है; उससे दूसरा कोई अभयस्थान नहीं है - उससे, अर्थात् स्व-संवेदन से दूसरा, अभय का - संसारदुख के त्रास के अभाव का स्थान नहीं है । उससे दूसरा (अन्य) सुख का स्थान नहीं है - ऐसा अर्थ है ॥२१॥ उस आत्मस्वरूप की प्राप्ति का उपाय कैसा है ? - वह कहते हैं :- |