
प्रभाचन्द्र :
मूढ़ बहिरात्मा, त्याग-ग्रहण करता है । किसमें (करता है)? बाहर (बाह्यवस्तु) में; द्वेष के उदय के कारण- अभिलाषा के अभाव के कारण, मूढात्मा (बहिरात्मा) उसका (बाह्यवस्तु का) त्याग करता है और राग का उदय होने पर, उसकी अभिलाषा की उत्पत्ति के कारण, उसका (बाह्यवस्तु का) ग्रहण करता है, परन्तु आत्मविद, अर्थात् अन्तरात्मा, आत्मा में ही / आत्मस्वरूप में ही त्याग-ग्रहण करता है । वहाँ त्याग तो राग-द्वेषादि का अथवा अन्तर्जल्परूप विकल्पादि का और स्वीकार (ग्रहण) चिदानन्दादि का होता है । जो निष्ठितात्मा (कृतकृत्य आत्मा) है, उसको अन्तर में या बाह्य में (कुछ) ग्रहण नहीं है तथा अन्तर या बाह्य में (कुछ) त्याग नहीं है ॥४७॥ अंतर में त्याग-ग्रहण करनेवाला अंतरात्मा किस प्रकार करे ? वह कहते हैं -- |