+ इन्द्रिय विषय से आत्मा का तनिक भी भला नहीं -
न तदस्तीन्द्रियार्थेषु यत्क्षेमङ्करमात्मन:
तथापि रमते बालस्तत्रैवाज्ञानभावनात् ॥55॥
इन्द्रिय-विषयों में न कुछ, आत्म-लाभ की बात ।
तो भी मूढ़ अज्ञानवश, रमता इनके साथ ॥५५॥
अन्वयार्थ :  [इन्द्रियार्थेषु] पाँचों इन्द्रियों के विषय में [तत्] ऐसा कोई पदार्थ [न अस्ति] नहीं है [यत्] जो [आत्मन्] आत्मा का [क्षेमङ्करं] भला करनेवाला हो, [तथापि] तो भी [बाल:] यह अज्ञानी बहिरात्मा, [अज्ञान-भावनात्] चिरकालीन मिथ्यात्व के संस्कारवश [तत्रैव] उन्हीं इन्द्रियों के विषयों में [रमते] आसक्त रहता है ।
Meaning : The feeling of bliss enjoyed by a yogI is not caused by the senses; despite that, because of ignorance, childish people chase sensuous pleasure.

  प्रभाचन्द्र    वर्णी 

प्रभाचन्द्र :

इन्द्रियों के पदार्थों में, अर्थात् पाँचों इन्द्रियों के विषयों में ऐसा कोई भी नहीं, जो क्षेमङ्कर (सुखकर), अर्थात् उपकारक हो । किसको? आत्मा को । वैसा होने पर भी, अर्थात् कोई सुखकर नहीं है तो भी (उनमें) रमता है - रति करता है । कौन वह ? बाल (अज्ञानी), अर्थात् बहिरात्मा उनमें ही, अर्थात् इन्द्रिय के विषयों में ही (रमता है ।) किससे (रमता है)? अज्ञानभावना से, अर्थात् मिथ्यात्व के संस्कारवश (रमता है) । जिनसे अज्ञान जन्मे - पैदा हो, वह अज्ञानभावना, अर्थात् मिथ्यात्व के संस्कार - उनसे (इन्द्रियों के विषयों में रमता है) ॥५५॥

अनादि मिथ्यात्व के संस्कार के कारण ऐसे (प्रकार के) बहिरात्मा होते हैं, वह कहते हैं --