
प्रभाचन्द्र :
सुख-दुख जानता नहीं । कौन (नहीं जानता)? शरीर, जड्पने के कारण (नहीं जानता); बुद्धिरहित बहिरात्माएँ; ऐसा होने पर भी, अर्थात् (शरीर) जानता नहीं, तथापि उनमें (शरीरादि में) ही करते हैं । क्या (करते हैं)? निग्रह (अनुग्रह) की बुद्धि (करते हैं), अर्थात् द्वेष के आधीन होकर, उपवासादि द्वारा शरीर को कृश करने का अभिप्राय, वह निग्रहबुद्धि और राग के आधीन होकर, कंकण, कटिसूत्रादि द्वारा (शरीरादिक को) भूषित करने का (श्रृंगारित करने का) अभिप्राय, वह अनुग्रहबुद्धि करते हैं ॥६१॥ जब तक शरीरादि में आत्मबुद्धि से प्रवृत्ति है, तब तक संसार है; उसके अभाव से मुक्ति है - यह दर्शाते हुए कहते हैं -- |