दृढात्मबुद्धिर्देहादावुत्पश्यन्नाशमात्मन: मित्रादिभिर्वियोगं च बिभेति मरणाद् भृशम् ॥76॥
आत्मबुद्धि है देह में, जिसकी प्रबल दुरन्त । वह तन-परिजन मरण से, होता अति भयवन्त ॥७६॥
अन्वयार्थ : [देहादौ दृढात्मबुद्धि:] शरीरादिक में जिसकी आत्मबुद्धि दृढ हो रही है - ऐसा बहिरात्मा [आत्मनः नाशम्] शरीर के छूटनेरूप अपने मरण [च] और [मित्रादिभि: वियोगं] मित्रादि-सम्बधियों से होनेवाले वियोग को [उत्पश्यन्] देखता हुआ, [मरणात्] मरने से [भृशम्] अत्यन्त [बिभेति] डरता है ।
Meaning : Physical decay and the loss of friends and loved ones through death, makes one who is strongly convinced that his body is his identity, greatly fear death.
प्रभाचन्द्र वर्णी
प्रभाचन्द्र :
देहादि में दृढ़ आत्मबुद्धिवाला, अर्थात् अविचल आत्म-दृष्टिवाला बहिरात्मा, अपना नाश (मरण) देखकर (अवलोककर) तथा 'मित्रादि से मेरा वियोग होगा' - ऐसा समझकर, मरण से अत्यन्त त्रास पाता है - ऐसा अर्थ है ।
परन्तु जिसको अपने आत्मा में ही आत्मबुद्धि है, वह मरण नजदीक आने पर क्या करता है? वह कहते हैं --