+ ज्ञानी और अज्ञानी की परिणति भिन्न -
व्यवहारे सुषुप्तो य: स जागत्र्यात्मगोचरे
जागर्ति व्यवहारेऽस्मिन् सुषुप्तश्चात्मगोचरे ॥78॥
जो सोता व्यवहार में, वह जागे निजकार्य ।
जो जागे व्यवहार में, रुचे न आतम-कार्य ॥७८॥
अन्वयार्थ : [यः] जो कोई [व्यवहारे] व्यवहार में [सुषुप्त:] सोता है [सः] वह [आत्मगोचरे] आत्मा के विषय में [जागर्ति] जागता है- आत्मानुभव में तत्पर रहता है [च] और जो [अस्मिन् व्यवहारे] इस व्यवहार में [जागर्ति] जागता है, वह [आत्मगोचरे] आत्मा के विषय में [सुषुप्त:] सोता है ।
Meaning : One who is asleep to the external world, is awake to his inner consciousness. One who is awake to the world around him, is unaware of his own soul.

  प्रभाचन्द्र    वर्णी 

प्रभाचन्द्र :

व्यवहार में, अर्थात् विकल्प नाम जिसका लक्षण है, उसमें (विकल्प के स्थानरूप) अर्थात् प्रवृत्ति-निवृत्ति - आदिस्वरूप (व्यवहार में) जो सोता है - प्रयत्न परायण नहीं है, वह आत्म-दर्शन में, अर्थात् आत्म-विषय में जागता है, अर्थात् संवेदन में (आत्मानुभव में) तत्पर होता है परन्तु जो इस उक्त प्रकार के व्यवहार में जागता है, वह आत्म-विषय में सोता है, (अर्थात् आत्म-दर्शन नहीं पाता)

जो आत्म-स्वरूप में जागता है, वह मुक्ति पाता है, यह कहते हैं : -