
प्रभाचन्द्र :
व्यवहार में, अर्थात् विकल्प नाम जिसका लक्षण है, उसमें (विकल्प के स्थानरूप) अर्थात् प्रवृत्ति-निवृत्ति - आदिस्वरूप (व्यवहार में) जो सोता है - प्रयत्न परायण नहीं है, वह आत्म-दर्शन में, अर्थात् आत्म-विषय में जागता है, अर्थात् संवेदन में (आत्मानुभव में) तत्पर होता है परन्तु जो इस उक्त प्रकार के व्यवहार में जागता है, वह आत्म-विषय में सोता है, (अर्थात् आत्म-दर्शन नहीं पाता) । जो आत्म-स्वरूप में जागता है, वह मुक्ति पाता है, यह कहते हैं : - |