मुक्तामुक्तैकरूपो यः, कर्मभिः संविदादिना ।
अक्षयं परमात्मानं, ज्ञानमूर्तिं नमामि तम् ॥1॥
अन्वयार्थ : [यः] जो, [कर्मभिः संविदादिना] कर्मों से तथा सम्यग्ज्ञान आदि से क्रमशः, [मुक्तामुक्तैकरूपः] मुक्त और अमुक्त होता हुआ एक-रूप है, [तम्] उस, [अक्षयं] अविनाशी, [ज्ञानमूर्तिं] ज्ञानमूर्ति, [परमात्मानं] परमात्मा को, [नमामि] नमस्कार करता हूँ ॥१॥