सोऽस्त्यात्मा सोपेपयोगोऽयं क्रमाद्धेतुफलावहः ।
यो ग्राह्योऽग्राह्यनाद्यन्तः स्थित्युत्पत्तिव्ययात्मकः ॥2॥
अन्वयार्थ : [सोपयोगः] उपयोगयुक्त, [क्रमात्] क्रम से, [हेतुफलावहः] कारण और कर्ता, [ग्राहय्:] ग्रहण करने योग्य और [अग्राहय् ] ग्रहण नहीं करने योग्य, [अनाद्यनन्तः] अनादि और अनन्त है, [स्थित्युत्पत्तिव्ययात्मकः] उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य रूप [सो आत्मा अस्ति अयं] ऐसा यह आत्मा है ।