+ अंतरंग-बहिरंग कारणों के सद्भाव से ही मुक्ति प्राप्ति -
कर्ता यः कर्मणां भोक्ता, तत्फलानां स एव तु ।
बहिरन्तरूपायाभ्यां, तेषां मुक्तत्वमेव हि ॥10॥
अन्वयार्थ : [कर्ता यः] जो कर्ता है [कर्मणां भोक्ता तत्फलानां स एव तु] वह ही कर्म और उनके फलों को भोगता है [बहिरन्तरूपायाभ्यां] बहिरंग और अन्तरंग उपायों द्वारा [तेषाम्] उन (कर्मों) का, [मुक्तत्वम् एव हि] छूट जाना भी उसी आत्मा को होता है ॥१०॥