
सद्-दृष्टिज्ञानचारित्रमृपायः स्वात्मलब्धये ।
तत्त्वे याथात्म्यसंस्थित्यमात्मनो दर्शनं मतम् ॥11॥
अन्वयार्थ : [स्वात्मलब्धये] अपना शुद्ध आत्म-स्वरूप प्राप्त करने के लिए [उपायः] अन्तरंग उपाय [सद्-दृष्टि-ज्ञान-चारित्रम्] सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र है [तत्त्वे] तत्त्वों में [यथात्म्यसंस्थित्यम्] स्वयं का भले प्रकार से निवास [आत्मनः] आत्मा का [दर्शनं] सम्यग्दर्शन [मतम्] माना गया है ।