+ उपेक्षा मोक्ष देने में समर्थ कैसे है? -
सापि च स्वात्मनिष्ठत्वात्सुलभा यदि चिन्त्यते ।
आत्माधीने सुखे तात, यत्नं किं न करिष्यसि ॥23॥
अन्वयार्थ : [सापि च] और वह (उपेक्षा-भावना) भी [स्वात्मनिष्ठत्वात्सुलभा] अपने-आप में लीनता के कारण सुलभ है [यदि चिन्त्यते] यदि ऐसा चिंतन करे तो [आत्माधीने सुखे तात] स्वाधीन सुख के लिए हे भाई ! [यत्नं किं न करिष्यसि] यत्न कौन नहीं करेगा ?