
यस्य मोक्षेऽपि नाकांक्षा, सः मोक्षमधिगच्छति ।
इत्युक्तत्वाद्धितान्वेषी, कांक्षा न क्वापि योजयेत् ॥22॥
अन्वयार्थ : [यस्य मोक्षे अपि] जिसके मोक्ष की भी [आकांक्षा न] अभिलाषा नहीं होती [सः मोक्ष] वह मोक्ष को [अधिगच्छति] प्राप्त करता है इस कारण [हितान्वेषी] हित की खोज में लगे हुए व्यक्ति को [क्वापि] कभी कोई [आकांक्षा] आकांक्षा / इच्छा [न योजयेत्] नहीं करनी चाहिए ।