+ सम्यक-चारित्र -
जाणवि मण्णवि अप्पु परु जो पर-भाउ चएइ ।
सो णिउ सुद्धउ भावडउ णाणिहिं चरणु हवेइ ॥30॥
ज्ञात्वा मत्वा आत्मानं परं यः परभावं त्यजति ।
स निजः शुद्धः भावः ज्ञानिनां चरणं भवति ॥३०॥
अन्वयार्थ : [आत्मानं च परं] आत्मा को और पर को [ज्ञात्वा मत्वा] जानकर और प्रतीति करके [यः परभावं] जो परभाव को [त्यजति] छोड़ता है [सः निजः शुद्धः भावः] वह आत्मा का निज शुद्ध भाव उन [ज्ञानिनां] ज्ञानीयों का [चरणं भवति] चारित्र होता है ।
Meaning : He, who having known and ascertained the nature of the self and the not-self, gives up Para-Bhavas (attributes or conditions of the not-self) and becomes firmly established in his Shuddha Atma (pure self), is said to possess the Samyaka Charitra (proper or right conduct).

  श्रीब्रह्मदेव