
जं जह थक्कउ दव्वु जिय तं तह जाणइ जो जि ।
अप्पहं केरउ भावडउ णाणु मुणिज्जहि सो जि ॥29॥
यद् यथा स्थितं द्रव्यं जीव तत् तथा जानाति य एव ।
आत्मनः संबन्धी भावः ज्ञानं मन्यस्व स एव ॥२९॥
अन्वयार्थ : [जीव] हे जीव ! [यत् यथा स्थितं] ये जिस तरह तिष्ठे हुए हैं, [तत् तथा] उनको वैसा ही [य एव जानाति] जो जानता है, [स एव] वही [आत्मनः संबंधी भावः] आत्मा का निज-स्वरूप [ज्ञानं मन्यस्व] सम्यग्ज्ञान है, ऐसा मान ।
Meaning : He who knows the substances as they actually are and knows the Atman likewise is a Samyaka Jnani .
श्रीब्रह्मदेव