
बिण्णि वि जेण सहंतु मुणि मणि सम-भाउ करेइ ।
पुण्णहँ पावहँ तेण जिय संवर-हेउ हवेइ ॥37॥
द्वे अपि येन सहमानः मुनिः मनसि समभावं करोति ।
पुण्यस्य पापस्य तेन जीव संवरहेतुः भवति ॥३७॥
अन्वयार्थ : [येन] जिस कारण [द्वे अपि सहमानः] दोनों को ही सहता हुआ [मुनिः] मुनि [मनसि] मन में [समभावं] समभाव को [करोति] धारण करता है, [तेन] इसी कारण [जीव] हे जीव, [पुण्यस्य पापस्य संवरहेतुः] पुण्य और पाप के संवर का कारण [भवति] होता है ।
Meaning : The Muni who bears pleasures and pains with equanimity, stops the influx of Punya and Papa .
श्रीब्रह्मदेव