+ ज्ञानी के ग्रहण-त्याग में राग-द्वेष नहीं -
वित्ति-णिवित्तिहिँ परम-मुणि देसु वि करइ ण राउ ।
बंधहँ हेउ वियाणियउ एयहँ जेण सहाउ ॥52॥
वृत्तिनिवृत्त्योः परममुनिः द्वेषमपि करोति न रागम् ।
बन्धस्य हेतुः विज्ञातः एतयोः येन स्वभावः ॥५२॥
अन्वयार्थ : [परममुनि वृत्तिनिवृत्त्योः] महामुनि प्रवृत्ति और निवृत्ति में [रागम्अपि द्वेषम्] राग और द्वेष को [न करोति] नहीं करता, [येन एतयोः] जिसने इन दोनों का [स्वभावः बंधस्य हेतुः] स्वभाव कर्म-बंध का कारण [विज्ञातः] जान लिया है ।
Meaning : Parama-Munis do not also entertain love and hatred towards Vrita - (vows) and Avrita (non-observance of vows); they know them to be the causes of bondage, Vrita causing the bondage of virtue, Avrita of evil.

  श्रीब्रह्मदेव